आज का पंचांग: गीता के आश्रय से कर्तव्य बोध

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।

आज का विचार

किस्मत कटपुतली का खेल करवाती है, वरना ज़िन्दगी के रंगमंच पर कोई भी कलाकार कमज़ोर नहीं होता, मिट्टी के दीपक सा है ये जीवन। तेल खत्म, खेल खत्म

10 दिसम्बर- श्रीरामचरितमानस

ब्यापि रहेउ संसार महुँ
माया कटक प्रचंड ।
सेनापति कामादि भट
दंभ कपट पाषंड ।।
( उत्तरकांड दो. 71)
राम राम बंधुओं, राम कथा सुनाने के बाद काकभुसुंडि जी गरूड़ जी से कहते हैं कि जगत में ऐसा कौन है जिसे माया ने न मोहित किया हो। संसार में माया की सेना फैली हुई है। काम, क्रोध व लोभ उसके सेनापति है और दंभ, कपट, पाखंड उसके योद्धा हैं।

मित्रों, एक तरफ़ माया है तो दूसरी ओर मायापति हैं जिनके अधीन यह माया है । यदि हम आप अपने को मायाधीश के अधीन कर लेते हैं तो फिर माया की सेना हमारा कुछ बिगाड़ नहीं कर सकती है। तो राम शरण में चले।

 आज का भगवद् चिन्तन

गीता के आश्रय से कर्तव्य बोध

जीवन की समर भूमि में किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में पड़ा प्रत्येक मनुष्य ही अर्जुन है। जीवन में जब-जब अनिर्णय की स्थिति में पहुँच जाओ और उचित-अनुचित के निर्धारण में विवेक आपका साथ न दे रहा हो तब-तब आप गीता जी की शरण में चले जाना। गीता जी अपने शरणागत को प्रत्येक अनिर्णय की स्थिति से बाहर निकालकर वास्तविक एवं श्रेष्ठ कर्तव्य का बोध कराती है।

जीवन के सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन का नाम ही श्रीमद्भगवद्गीता है। गीता जी की शरण में जाने के बाद अर्जुन ने कहा कि मेरा मोह नष्ट हो गया है और मैंने अपनी उस स्मृति को प्राप्त कर लिया है जो मुझे मेरे कर्तव्य पथ का बोध कराती है। ठीक इसी प्रकार आज भी पार्थ की ही तरह गीता जी द्वारा अपने प्रत्येक शरणागत जीव के संशयों का नाश कर उसे उसकी वास्तविक स्थिति एवं कर्तव्यों का बोध कराया जाता है।

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