पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।
धर्म को जानने के चार तरीके बताए जाते हैं। शास्त्र से, परम्परा से, उत्सवों से और धर्मगुरुओं से। ये जो चार मार्ग हैं, इनमें धर्म के प्रति हमारी जिज्ञासा समाप्त हो जाती है और हम एक भेड़चाल का हिस्सा बन जाते हैं। लेकिन धर्म को जानने का पांचवां तरीका है- धर्म को जीना। कम लोग हैं जो ऐसा कर पाते हैं। क्योंकि धर्म यदि सैद्धांतिक रूप से जाना जाए, तो फिर वह जीवंत नहीं रहता।
हम सिर्फ एक विचारक बन जाते हैं, साधक नहीं बन पाते। महाकुम्भ भी धर्म को जानने का एक तरीका है। बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। कुछ लोगों के लिए बौद्धिक-विलास बन गया। कुछ के लिए वाणी-विलास रह गया। कुछ लोग पर्यटन-विलास करते रहे। और बाकी लोग एक-दूसरे का अनुकरण कर रहे थे। कि वो गए तो हम भी चले जाएं।
इसमें तो कोई संदेह नहीं कि मां गंगा तो उपकार करने के लिए सदैव तैयार हैं। लेकिन गंगा ने ही यह धर्म सिखाया है कि यदि जीवन-मरण के सूत्र हमने धर्म से नहीं उठाए, तो धर्म भी एक आयोजन ही बनकर रह जाएगा।
आज का भगवद् चिन्तन
बुराई सुनने से बचें
जो लोग आपके सामने दूसरों की बुराई करते हैं, निश्चित ही वो लोग दूसरों से आपकी बुराई भी करते होंगे। बुरा करना ही गलत नहीं है अपितु बुरा सुनना भी गलत है। किसी की बुराई सुनने से हमारे स्वयं के विचार भी दूषित हो जाते हैं। विचारों का प्रदूषण विज्ञान से नहीं अपितु स्वयं के अन्तः ज्ञान से ही मिटाया जा सकता है। विचारों का प्रदूषण फैलने का कारण हमारी वो आदतें हैं जिन्हें किसी की बुराई सुनने में रस आने लगता है।
बुराई को सुनना, बुराई को चुनना जैसा ही है क्योंकि जब हम बुराई सुनना पसंद करते हैं तो बुराई का प्रवेश हमारे जीवन में स्वतः होने लगता है। जो हम रोज सुनते हैं, देखते हैं, वही हम होने भी लग जाते हैं। उन लोगों से अवश्य ही सावधान रहने की आवश्यकता है, जो सदैव दूसरों की बुराई का बखान करते रहते हैं। दूसरों की बुराई सुनने की अपेक्षा स्वयं के जीवन से बुराई को मिटाने के लिए प्रयासरत रहें।
आज का विचार
रिश्ते निभाने के लिए वक्त की नहीं, चाहत की जरूरत होती है। जब मन में चाहत होती है, वक्त की कोई कमी नहीं होती है.!