वन ही जीव जगत के अस्तित्व का आधार : डॉ अरविन्द बिजल्वाण, डा टी एस मेहरा

हिमशिखर खबर

विश्व वानिकी दिवस प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य वनों के महत्व और पृथ्वी पर जीवन चक्र को संतुलित करने तथा वनों के योगदान के बारे में जनसामान्य को जागरूकता करना है। वर्तमान में वन एवं पर्यावरण के व्यापक महत्व के मद्देनज़र इस दिवस को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में स्थायी वन प्रबंधन और संरक्षण के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने, जैव विविधता का संरक्षण करने तथा जलवायु परिवर्तन में वनों के महत्व को उजागर करने के लिए वैश्विक स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम और गतिविधियाँ आयोजित करना है।


इस वर्ष 2025 में विश्व वानिकी दिवस का विषय वन और खाद्य पदार्थ है। आदिकाल से ही वन और खाद्य पदार्थो का आपस में गहरा सम्बन्ध रहा है, जिसको प्राचीनकाल में कन्द मूल फलों को भोजन के रूप में प्रयोग करने से समझा जा सकता है। वन कई तरह के खाद्य उत्पाद प्रदान करते हैं, जिनमें फल, सब्जियां, मसाले, मशरूम आदि शामिल हैं साथ ही वन स्थायी आजीविका सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक हैं।

वनों से प्राप्त मुख्य भोजन जंगली खाद्य पदार्थ हैं, ये वे पौधे एवं जीव हैं जो जंगल में उगते हैं और भोजन के रूप में खाए जाते हैं। भारत, अपनी समृद्ध जैव विविधता के साथ, जंगली खाद्य पदार्थों की एक विशाल श्रृंखला समेटे हुये है जो कई समुदायों, विशेष रूप से ग्रामीण आबादी के पारंपरिक आहार का एक अभिन्न अंग रहा है। मुख्यतः जंगली खाद्य पदार्थों को उपयोग किए जाने वाले पौधे के भागों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इस श्रेणी में पत्तेदार जंगली सब्जियां विटामिन और खनिजों से भरपूर होती हैं। फल वर्ग में जामुन, बेर और आंवला जैसे जंगली फल एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होते हैं और पारंपरिक चिकित्सा में इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। जड़ें और कंद आदि में डायोस्कोरिया, शकरकंद, टैपिओका और कोलोकेसिया जैसी जंगली जड़ें और कंद जटिल कार्बोहाइड्रेट और फाइबर से भरपूर होते हैं। मशरूमरू जैसे गुच्छी या मोरेल, चैंटरेल और ऑयस्टर जैसे कई जंगली मशरूम अपने अनूठे स्वाद और बनावट के लिए बेशकीमती हैं। बीज और मेवे जैसे चिरौंजी, कुसुम और पाइन नट्स स्वस्थ वसा और प्रोटीन आदि से भरपूर होते हैं। साथ की ही विभिन्न प्रकार के जंगली औशधीय एवं सगन्ध पादप भी खानें में प्रयोग होते हैं। वनों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों के बहुत सारे लाभ हैं जो पोषण, विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं तथा हमारे पारंपरिक आहार को पौष्टिक बनाते हैं। खाद्य सुरक्षा में जंगली खाद्य पदार्थ भोजन का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान कर सकते हैं, खासकर अभाव या आर्थिक कठिनाई के समय में। जंगली खाद्य पदार्थों का सांस्कृतिक एवं पारंपरिक महत्व भी है, तथा इनका सेवन पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को संरक्षित करने में मदद करता है। टिकाऊ कटाई और विपणन प्रथाओं के माध्यम से आर्थिक तौर पर जंगली खाद्य ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए आय का एक स्रोत भी प्रदान करता है।


यदि उत्तराखंड के जंगली खाद्य पदार्थ की बात करें तो उत्तराखंड के जंगली खाद्य पदार्थ भी अतुलनीय हैं। भारत के हिमालयी क्षेत्र में स्थित उत्तराखंड जंगली खाद्य पदार्थों की एक विविध श्रृखला समेटे हुये है जो सदियों से स्थानीय व्यंजनों का अभिन्न अंग रहे हैं। पत्तेदार साग से लेकर फलों और मेवों तक ये वन न केवल पोषण का एक समृद्ध स्रोत हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका का समर्थन करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। उदाहरणस्वरूप उत्तराखंड में जंगली फलों एवं सम्बन्धित वर्ग में जैसे काफल, महल (मोल), भमोरा, बेडू, घिंघारू, बेल, करौंदा, आवंला, गूलर, जंगली आम, जंगली अखरोट, जामुन, बन नींबू (जामिर), चीड़ के बीज, हिंसालू, किंनमोेंडा़ आदि। उक्त फलों में काफल विटामिन ए और सी से भरपूर एक स्थानीय समुदायों के बीच का लोकप्रिय फल है साथ ही विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आंवला कई स्थानीय घरों में एक बेशकीमती फल है। जामुन एक मीठा और तीखा फल जो एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है और इसमें मधुमेह विरोधी गुण पाए जाते हैं। नट और बीजो में अखरोट ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है एवं कई स्थानीय घरों में एक बेशकीमती नट के रूप में पहचान बनाता है। पाइन के पेड़ों से प्राप्त पाइन नटस स्वस्थ वसा और प्रोटीन से भरपूर होते हैं। पत्तेदार सागो में कंडाली (नेटल) आयरन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है, तथा कंडाली कई स्थानीय घरों में मुख्यतया भोजन के रूप मे उपयोग में लायी जाती रही है साथ ही बथुवा या चीनोपोडियम स्थानीय भोजन में पौष्टिक तत्वोयुक्त साग है। साग एवं पत्ते जैसे लिंगाडा, गुरिंयाल, सेमला, खोल्या आदि तथा जड़ो में तुरल आदि महत्वपूर्ण हैं साथ ही विभिन्न प्रकार के मषरूम आदि उत्तराखंड के जंगलो से प्राप्त होते है। अतः उत्तराखंड के जंगली खाद्य पदार्थ पौष्टिक व्यंजनों का खजाना हैं, जो स्थानीय समुदायों को पोषण और स्वाद का एक समृद्ध स्रोत प्रदान करते हैं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, यह आवश्यक है कि हम उत्तराखंड के जंगलों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य और उत्पादकता को सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ एवं सस्टेनेबल संरक्षण प्रयासों को प्राथमिकता दें।
हालाँकि, वन और भोजन के बीच का संबंध जटिल है, और भोजन की बढ़ती माँग वनों पर दबाव डाल रही है, जिससे वनों की कटाई, आवास का नुकसान और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। जंगली खाद्य पदार्थों की मुख्य चिंताएँ हैं जंगलो से इन खाद्य पदार्थों का दोहन जिससे इन जंगली खाद्यों की जैव विविधता को नुकसान होता है। साथ ही वनों की कटाई, शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण आवास का नुकसान और विखंडन इन जंगली खाद्य पदार्थों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है। जंगलो से जुड़ाव और निगरानी की कमी से जंगली खाद्य पदार्थों में अस्थिरता आ सकती हैं साथ ही सांस्कृतिक क्षरण और पारंपरिक ज्ञान का नुकसान जंगली खाद्य पदार्थों के निरंतर उपयोग और संरक्षण को खतरे में डाल सकता है।


वर्तमान समय में जंगली फलों के संरक्षण की सख्त जरूरत है ताकि इनके सतत उपयोग को बनाए रखा जा सके। इस दिसा में वैज्ञानिक एवं सतत कटाई के अभ्यासों को बढ़ावा दें जो जंगली खाद्य आबादी के दीर्घकालिक अस्तित्व को बनाये रखें। जंगली खाद्य पदार्थ की रक्षा हेतु वन संरक्षण के प्रयासों का भरपूर समर्थन करें एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा करें। साथ ही जंगली खाद्य पदार्थों से संबंधित पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं का वैज्ञानिक विधि से दस्तावेजीकरण और प्रचार करें। ऐसे नियामक ढाँचे स्थापित करें जो जंगली खाद्य पदार्थों के सतत उपयोग और संरक्षण को सुनिश्चित करें। जंगली खाद्य पदार्थों के सतत उपयोग और संरक्षण को बढ़ावा देकर, हम भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और जैविक विरासत को संरक्षित करने में मदद कर सकते हैं, साथ ही ग्रामीण समुदायों के लिए पौष्टिक भोजन में भी सततता प्रदान कर सकते हैं। टिकाऊ वन प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने एवं वन खाद्यो को वन से वाहर उगाने हेतु कृषि-वानिकी को बढ़ावा देना तथा सस्टेनेबल कृषि का समर्थन करना तथा वनों की रक्षा और पुनसर््थापना करना वर्तमान समय की आवश्यक है। यह कदम उठाकर हम पारिस्थितिक संतुलन बनाए रख सकते हैं एवं जैव विविधता को संरक्षित कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थायी आजीविका सुनिश्चित कर वनों से खाद्य पदार्थ सतत उपलब्ध करा सकते हैं।
लेखक– डा0 अरविन्द बिजल्वाण, वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी, टिहरी गढवाल में वैज्ञानिक है तथा डा0 टी0 एस0 मेहरा, वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी, टिहरी गढवाल में अधिश्ठाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *