हिमशिखर समाचार
प्रो. गोविन्द सिंह (जाने-माने स्तंभकार)
मुझे लगता है कि भाजपा आलाकमान ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की कमान सौंपकर एक सही निर्णय लिया है। भाजपा में दो तरह के नेता हैं। इनमें पुरानी पीढ़ी के डाॅ रमेश पोखरियाल निशंक, सतपाल महाराज सहित कई नेता हैं। तो दूसरी ओर नई पीढ़ी के जमीन से जुड़े नेता हैं जो छात्र राजनीति या संघ की सेवा से निकलकर भाजपा में आगे पहुंचे हैं। इनमें तेजतर्रार नेताओं में शामिल त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत को भाजपा ने शायद परख लिया है। उनसे जो अपेक्षाएं थी, शायद वे पूरी नहीं हो पाईं, इसलिए समय से पहले पार्टी आलाकमान ने उनसे इस्तीफा ले लिया।
इसलिए सवाल यह था कि नया आदमी कौन हो और कैसा हो? किसको सरकार की कमान सौंपी जाए? क्योंकि चुनौतियां बहुत हैं। नया व्यक्ति जो भी आता है, उसका पूरा करियर दांव पर लग जाता है। सिर्फ छह महीने बच गए हैं.इन छह महीनों में ही आगामी चुनाव की पूरी तैयारी करनी है। ऐसे में पार्टी को ऐसा व्यक्ति चाहिए था, जो उत्तराखण्ड के गांव-गांव पहाड़-पहाड़ जाकर घूम सके और लोगों से मिल सके। डायनमिक लीडरशिप पार्टी को दे सके। पार्टी के प्रति लोगों में भरोसा पैदा कर सके.
उस लिहाज से मुझे लगता है कि पुष्कर सिंह धामी सही चुनाव हैं। उन्होंने राजनीति की शुरूआती दीक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र संघ की राजनीति से ली है। वहीं से उन्होंने मेहनत के संस्कार ग्रहण किए हैं। इससे पहले उन्होंने भाजपा युवा मोर्चा में रहकर काफी डायनिमक लीडरशिप दी थी. उस दौरान उन्होंने अपनी संगठन-क्षमता दिखाई थी. इसीलिए शायद उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है।
मुझे उम्मीद थी कि उन्हें त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह सरकार में भी मंत्री बनाया जाना चाहिए था। खैर नहीं बनाया गया तो वह अलग मामला है। अब सीधे इतना बड़ा मौका देकर पार्टी आलाकमान ने बहुत बड़ा जोखिम उठाया है. लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि पार्टी ने युवा शक्ति पर भरोसा भी जताया है। युवा नेता धामी 45 साल के हैं, मंत्री के रूप में उन्हें कोई अनुभव नहीं है। पर उनके भीतर संगठन क्षमता जबर्दस्त है। पिछली विधानसभा में उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया था।
खटीमा विधान सभा क्षेत्र पारंपरिक रूप से कांग्रेसी सीट मानी गई थी। 2012 से पहले इस सीट पर कांग्रेसी उम्मीदवार जीतता रहा था। इस सीट में कांग्रेस का अच्छा-खासा वोट बैंक था। 2012 में उन्हें टिकट देकर भी पार्टी ने एक जोखिम ही उठाया था. लेकिन धामी न सिर्फ जीते बल्कि उन्होंने दूसरी बार भी सीट बरकार रखी। इससे पता चलता है कि उनकी जमीनी पकड़ कितनी मजबूत है. धामी एक सेल्फ मेड राजनेता हैं. पारिवारिक पृष्ठभूमि भी राजनीतिक नहीं है. धन-संपत्ति की दृष्टि से भी कोइ बहुत अमीर नहीं हैं. खुद अपने पैरों पर खड़े हुए हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति को बहुत समय तक दबा कर नहीं रखा जा सकता था.
उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि छह महीने में पार्टी को नए सिरे से खड़ा कर विधानसभा चुनाव जीतना है। पार्टी के अंदर धड़ों में संतुलन बिठना है। गढ़वाल और कुमाऊं के बीच भी संतुलन बिठाना है। नई और पुरानी पीढी के नेताओं को साथ लेकर चलना है. सूबे में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी आगे बढ़ रही हैं। ऐसे में इन दोनों पार्टीयो से भी लोहा लेना है।
भारतीय जनता पार्टी ने निश्चय ही नया दांव आजमाया है। अभी तक की पसंद में वे सर्वश्रेष्ठ हैं। भले ही सतपाल महाराज या विशन सिंह चुफाल या बंशीधर भगत के पास अनुभव अधिक हो लेकिन उनके भीतर वैसी गतिशीलता नहीं देखी गयी, जो धामी में है. भाजपा आला कमान शायद उन सभी को परख भी चुकी है। इसीलिए इस बार नए व्यक्ति को मौका दिया है। जोखिम है, पहाड़ – सी चुनौती है, लेकिन हिम्मत की उम्मीद है बाक़ी है. धामी जी को शुभकामनाएं.