काका हरिओम्
जीवन को जब केवल प्रत्यक्ष के आधार पर हम समझने की कोशिश करते हैं, तो जबर्दस्त चूक कर बैठते हैं. ऐसे में ही ‘वदतो व्याघात दोष’ की चपेट में आ जाते हैं अर्थात् अपनी बात को खुद ही काटते नजर आते हैं.
इस दृष्टि से आइए, जरा जीवन को देखते हैं. जन्म से मृत्यु के बीच को ही हमने जीवन माना हुआ है. और उसके बाद? उस पर हम विचार ही नहीं करना चाहते. क्योंकि हम उसके बाद अपने अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करना चाहते. सोचिए 360 में से केवल 180 का विवेचन कर हम अन्तिम निर्णय पर पहुंचना चाहते है अर्थात् मृत्यु के बाद सब समाप्त हो जाता है, हमने यह मान लिया है. लेकिन आपकी मान्यता सच ही हो, यह कोई जरूरी तो नहीं. यह hypotheticaly सही हो सकती है, लेकिन इसके rejection की संभावना 50 प्रतिशत है.
क्या लिटिल चैम्प जैसे कॉम्पटीशन्स को देख कर आप कुछ सोचने को विवश नहीं होते? जिसे आप गॉडगिफ्टेड कहते हैं, उसे हम क्या मानें? क्या आप by chance कह कर यह नहीं कहना चाहते कि बिना कारण भी कार्य होता है. यह सोच वैज्ञानिक नहीं है. कुछ नहीं से कुछ की उत्पत्ति भला कैसे हो सकती है.
वैसे दर्शनशास्त्र में इस प्रश्न के अलग अलग उत्तर मिलते हैं कि मृत्यु के बाद क्या जीवन समाप्त हो जाता है और यदि नहीं तो उसका क्या प्रमाण है.
माना आप शास्त्रप्रमाण को नहीं मानते लेकिन अनुमान से तो सत्य के पास पहुंचा जा सकता है. जन्म के समय टेलेंट में विविधता और फिर थोड़ा सा अनुकूल वातावरण मिलते ही उसमें जबर्दस्त परिष्कार क्या इसकी पुष्टि नहीं करते कि मृत्यु शरीर को भले ही नष्ट कर देती हो, लेकिन कुछ ऐसा है जो अपने असली रूप में बना रहता है. उसकी यात्रा को लेकर विचारों में भिन्नता हो सकती है, लेकिन उसके अस्तित्व को स्वीकार करने में सन्देह के लिए कोई स्थान नहीं है. अर्थात् आप मर कर भी मरते नहीं हैं. हां, जो दिखाई दे रहा था वह अदृश्य हो गया बस.समय आने पर वह निश्चित रूप से दिखाई देगा.
श्रीकृष्ण ने गीता में योगभ्रष्ट के बारे में समझाते हुए कहा है कि जिसकी साधना करते समय बीच में मृत्यु हो जाती है, वह अगले जन्म में उपयुक्त वातावरण में जन्म लेकर उसे वहीं से पूरा करता है, जहां से उसने छोड़ा था.
इस प्रकार मृत्यु से जन्म के बीच की कड़ी को जोड़कर आप जब जीवन को देखना शुरू करते हैं तो जीने का नजरिया ही बदल जाता है पूरी तरह से. जरा विचार करके देखिए. सनातन धर्म का यह एक ऐसा महत्वपूर्ण बिन्दु है, जिस ओर हममें से ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जाता. जीवन की विवेचना 360 डिग्री पर, उसकी संपूर्णता में कीजिए. बदलेगी सोच, बदलेगा जीवन. स्वीकारिए मृत्यु के बाद, जन्म के पहले की अपनी अनवरत यात्रा को.