नई टिहरी
संसार के कोने-कोने तक भारतीय संस्कृति की पताका फहराने वाले परमहंस स्वामी रामतीर्थ महाराज की 148 वीं जयंती सादगी से मनाने का निर्णय लिया गया है। पहली बार टिहरी के कोटी कालोनी के निकट स्वामी रामतीर्थ की समाधि स्थल पर हवन-पूजन के साथ ही स्वामी राम के वेदांतिक समाजवाद पर चर्चा की जाएगी।
यह मां गंगा और हिमालय की खूबसूरत वादियों का ही तो आकर्षण है कि संत-महात्मा यहां अनादि काल से खींचे चले आते रहे हैं। स्वामी रामतीर्थ को मां गंगा और पुरानी टिहरी से बहुत स्नेह था। इसीलिए उन्होंने गंगा तट पर टिहरी की परम पावन वादियों को साधना के लिए चुना।
कठोर तप करने के बाद उन्होंने टिहरी में मानव जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त किया था। उन्होंने अमेरिका सहित कई देशों में बड़े जोरदार ढंग से हाथों में सरसों जमाकर इस बात का सबूत दिया कि भारतीयों की वैदिक फिलॉसफी संसार की सभी फिलॉसफियों से हर प्रकार से श्रेष्ठ और ऊंची है।
स्वामी जी ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपना पार्थिव शरीर टिहरी में मां गंगा को समर्पित कर दिया था। इसे विडंबना ही कहेंगे कि ज्ञान-साधना से संपूर्ण विश्व को अलौकिक करने वाले दिव्य संत को धीरे-धीरे भुलाया जाने लगा है।
काका हरिओम् का कहना है कि आज के समय देश को वेदांत, एकता, संगठन, राष्ट्रधर्म और और विज्ञान साधना की आवश्यकता है। इसके लिए स्वामी रामतीर्थ के विचारों का प्रचार-प्रसार करना जरूरी है। बताया कि स्वामी रामतीर्थ की जयंती की पूर्व संध्या पर टिहरी में आज 21 अक्टूबर को आन लाइन वेदांत सम्मेलन और 22 अक्टूबर को टिहरी के कोटी कालोनी में स्वामी रामतीर्थ की समाधि स्थल पर हवन-पूजन किया जाएगा।
विदित हो कि यह एक संयोग ही है जो स्वामी रामतीर्थ जी महाराज का जन्म, संन्यास और महानिर्वाण दीपावली को हुआ था। इसीलिए स्वामी जी के प्रचार-प्रसार में लगी कुछ संस्थाएं दीपावली को ‘रामदिवस’ के रूप में मनाती हैं। लेकिन टिहरी में इनका जन्मोत्सव 22 अक्टूबर को सार्वजनिक रूप में मनाया जाता है। स्वामीजी का जन्म गुजरांवाला जिले के मुरारीवाला गांव (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) में 22 अक्टूबर को सन् 1873 में हुआ था।