विजय माटा
नई दिल्ली
आज 14 नवंबर को स्वामी रामतीर्थ मिशन, दिल्ली का दो दिवसीय वेदान्त सम्मेलन अपनी पूर्ण गरिमा के साथ सम्पन्न हुआ। इसमें अपने उद्बोधन से वक्ताओं ने बादशाह राम द्वारा प्रतिपादित ‘भक्ति’ की सरल व्याख्या की।
आचार्य काका हरिओम् जी का कहना था कि भक्त जब अपने अस्तित्व को अपने इष्ट में मिला देता है, तभी भक्ति का उदय होता है। जीवन में सफल होने का सूत्र भी इसी भक्ति सूत्र में छिपा हुआ है।
बहिन अमृत ने स्वामी राम के वेदान्त की व्याख्या करते हुए जीवन में भाव के महत्व को समझाया। उनका कहना था कि जहां बुद्धि थक जाती है, वहीं से शुरू होती है भाव की पावन यात्रा।
स्वामी शिवचंद्रदास जी ने विभिन्न ग्रंथों का उद्धरण देते हुए कहा कि समर्पण को ही यदि भक्ति कहा जाए, तो अतिशयोक्ति न होगी।
विदित हो कि मिशन के संस्थापक स्वामी हरिॐ जी महाराज का कहना था कि यदि एक को भी सही मार्ग मिल गया तो समझो आपके सभी आयोजन सफल हो गए।