पंडित हर्षमणी बहुगुणा
आज (14 अप्रैल) सूर्य ने मेष राशि में प्रवेश किया है। ये ग्रह 14 मई तक इसी राशि में रहेगा। ज्योतिष के साथ ही धर्म के नजरिए से भी सूर्य के राशि परिवर्तन का महत्व काफी अधिक है। सूर्य जब राशि बदलता है तो इसे संक्रमण यानी संक्रांति कहते हैं। संक्रांति का नाम सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है, उस राशि से तय होता है।
मीन राशि से निकलकर सूर्य मेष राशि में आ रहा है, इसके साथ ही खरमास खत्म हो जाएगा। अब विवाह, गृह प्रवेश, जनेऊ जैसे मांगलिक संस्कारों के लिए शुभमुहूर्त मिलने लगेंगे।
मेष संक्रांति पर नदी स्नान, पूजा-पाठ, सूर्य को अर्घ्य, दान-पुण्य करने की परंपरा है। जब सूर्य मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करता है तो ये खगोलीय घटना केवल ज्योतिषीय दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मेष संक्रांति का उल्लेख ज्योतिषीय ग्रंथों और पुराणों में भी मिलता है। सूर्य सिद्धांत, भविष्य पुराण और विष्णु धर्मोत्तर पुराण जैसे ग्रंथों में संक्रांतियों के बारे में बताया गया है। संक्रांति को संक्रमण काल कहा गया है, जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
शास्त्रों के अनुसार मेष संक्रांति पर स्नान, दान, जप और तप का अक्षय पुण्य मिलता है। इस दिन खासतौर पर तिल, गुड़, वस्त्र, और जल का दान करना चाहिए। अभी गर्मी का समय है तो किसी सार्वजनिक जगह पर प्याऊ लगवा सकते हैं। ये संभव न हो तो किसी प्याऊ में मटके का दान कर सकते हैं।
आज भगवान भास्कर मेष राशि में प्रातः काल से पूर्व रात दो बजकर तैंतीस मिनट पर प्रवेश कर रहे हैं। विषुवत संक्रान्ति, पुण्य काल प्रातः से मध्याह्न तक या दिन भर। सिद्धार्थी नामक सम्वत्सर का प्रारम्भ। ‘मेषसंक्रमे प्रागपरा दश घटिका: पुण्यकाल:।’ आज से सौर वैशाख मास का शुभारम्भ हो जाएगा। महीनों का वजूद सूर्य के संक्रमण से होता है, जब भी हम संकल्प लेते हैं तो सौर मानेन कह कर उस माह का नाम लेते हैं। हर दिन का अपना महत्व है, भगवान श्रीराम की जन्म कुण्डली में सूर्य मेष राशि का लिखा होने पर यह जिज्ञासा प्रबल हो जाती है कि जब भगवान श्रीराम का जन्म– ” नौमी तिथि मथु मास पुनीता” मधु मास में हुआ तो सूर्य मेष राशि में क्यों? लिखा गया है। यह जिज्ञासा चान्द्र मास व सौर मास का अन्तर समझ कर शान्त की जा सकती है, वैशाख माह का नाम इस लिए रखा क्योंकि इस माह की पूर्णिमा को विशाखा नक्षत्र होता है। आज तो सावन मास, नाक्षत्र मास, चान्द्र व सौर अनेक प्रकार के महीने हैं जो सरलता से पहचाने जाते हैं! स्पष्ट हैं। आज भी इस तरह की बहुत जिज्ञासाएं कतिपय व्यक्तियों की हो सकती हैं, जिन्हें शान्त करने का प्रयास किया जा सकता है। “
” आज से वैशाख मास प्रारम्भ हो रहा है, इस माह के विषयक स्कन्द पुराण में लिखा है कि– न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम्।। वैशाख का महीना मां की तरह सब प्राणियों को अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है। मां तो मां ही होती है, भले ही आज हम उन्हें वृद्धाश्रमों में भेज दें, व लोकेषणा से प्रचार-प्रसार कुछ भी करें। धर्म और यज्ञ का सार है भगवान विष्णु को प्रसन्न करना, इस महीने जिस किसी व्यक्ति ने सूर्योदय से पूर्व स्नान किया उसके समस्त पाप शान्त हो जाते हैं। और यह विशेषता भी है इस महीने की,- कि सब प्रकार के दान से जो पुण्य मिलता है, सब तीर्थों से जो फल मिलता है इस महीने वही फल केवल जल दान से प्राप्त होता है। यदि स्वयं जल दान न कर सकें तो अन्य लोगों को जल दान हेतु प्रेरित करें। दस हजार राजसूय यज्ञ के बराबर फल प्राप्त किया जा सकता है केवल जल दान से। छाता, पंखा, पादुका, आराम की व्यवस्था करने से अनन्त कोटि फल की उपलब्धि मिलती है। कुछ निषेध भी हैं यथा — तेल लगाना, दिन में सोना, कांसी के पात्र में भोजन करना, घर में नहाना, निषिद्ध पदार्थ खाना, दुबारा भोजन करना आदि। इस माह का नाम माधव है, अर्थात् इस माह के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण हैं, अतः यह प्रार्थना भगवान से करनी चाहिए — ‘मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ। प्रातः स्नान करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव: ।।’ बंगाल के लोग इसे नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। और हम भी नव वर्ष की शुरुआत आज से ही करते हैं।आज के दिन सत्तू दान का अपना विशेष महत्व है। तो आइए पुण्य अर्जित किया जाय । “
” हमारे उत्तराखंड में इस माह का विशेष महत्व है, प्राचीन काल से ही यह पूरा महीना मेलों (थौलों) का रहता था। यद्यपि आज हर दिन मेला है पर तब जब मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे तब थौल की परम्परा को योजित कर बेटी बहुओं को भ्रमण की खुली छूट दी गई थी, तब हर मां, बहिन व बहु अपने माइके वालों से मिलने थौल जाती थी उसका कारण भी था कि बहुधा बेटी बहु माघ के महीने अपने ससुराल में आ जाती हैं, चैत्र मास माइके जाने हेतु प्रतिबंधित था अतः वैशाख में मेले के साथ अपने भाई बहनों से मिलने का सुअवसर मिल जाता था। तो आइए इस महीने मेलों का आनन्द भी लिया जाय।