हिमशिखर धर्म डेस्क
आज शनिवार को नवरात्रि की अष्टमी तिथि है। चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन दुर्गाष्टमी व्रत रखा जाता है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की उपासना व विधि पूर्वक पूजन किए जाने का विधान है। महागौरी को भगवान गणेश की माता के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए माना जाता है कि अष्टमी तिथि पर महागौरी को प्रसन्न करने से भगवान शिव सहित गणेश जी और देव कार्तिकेय भी प्रसन्न हो जाते हैं। इस दिन हवन और कन्या पूजन करने का भी विधान है।
महागौरी की पूजा का फल
महागौरी की पूजा को लेकर मान्यता है कि जिनकी कुंडली में विवाह संबंधित परेशानियां हों उनको अष्टमी पर मां महागौरी की उपासना करने से शुभ फल मिलता है। पौराणिक कथा भी है कि महागौरी ने स्वयं तप करके भगवान शिवजी जैसा वर प्राप्त किया था। यदि किसी के विवाह में विलंब हो रहा हो तो वह भगवती महागौरी की साधना करें, तो उनका विवाह मनोरथ पूर्ण होने की मान्यता है।
इस मंत्र से करें देवी की पूजा
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ: हे मां! सर्वत्र विराजमान और मां गौरी के रूप में प्रसिद्ध अंबे मां, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे मां, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
पार्वती जी ने की थी जब घोर तपस्या
पूर्व जन्म में मां ने पार्वती रूप में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी तथा शिव जी उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और इसके बाद पार्वती जी ने भोलेनाथ को पति स्वरूप में प्राप्त किया था। शिव जी की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते हुए मां का शरीर धूल-मिट्टी और मौसम के प्रभाव से मलिन हो गया था। जब शिवजी ने गंगाजल से इनके शरीर को स्वच्छ किया तब उनका शरीर गौर व दैदीप्यमान हो गया। तब ये देवी महागौरी के नाम से विख्यात हुईं।
ऐसा है मां गौरी का स्वरूप
मां के आठवें स्वरूप महागौरी की 4 भुजाएं हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल है। दूसरा हाथ अभय मुद्रा में हैं। तीसरे हाथ में डमरू सुशोभित है और चौथा वर मुद्रा में है। मां का वाहन वृष है। साथ ही उनका रंग एकदम सफेद है।