औली बना पर्यटकों की पहली पसंद: बर्फबारी से पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों के चेहरे खिले

  • देर से ही सही पर दो साल बाद 1 फरवरी को हुआ जम कर हिमपात
  • एटीवी बाइक, स्लेज, स्कीइंग, ट्यूब राइडिंग, जिप्सी राइड और रॉक क्लाइंबिंग का उठा सकते हैं लुत्फ

प्रदीप बहुगुणा, औली (जोशीमठ): औली में गुरुवार 1 फरवरी को जम कर बर्फबारी हुई। देर से ही सही पर दो साल बाद हुए हिमपात से पर्यटन से जुड़े लोग उत्साहित हैं। सेब के बागवान और किसानों ने भी राहत की सांस ली है।

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उत्तराखंड के चमोली जिले का औली पर्यटकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। यहां स्कीइंग के अलावा एटीवी बाइक, स्लेज, ट्यूब राइडिंग, जिप्सी राइड और रॉक क्लाइंबिंग का भी पर्यटक लुत्फ उठा सकते हैं। स्कीइंग के लिए बेहतरीन ढाल की वजह से देश ही नहीं विदेशों से भी स्कीइंग प्रेमी यहां पहुंचते हैं लेकिन पिछले दो साल से कम बर्फबारी की वजह से जहां यहां स्कीइंग की प्रतियोगिताएं नहीं हो पाईं वहीं पर्यटकों की संख्या भी काफी घट गई।

दो साल पहले जोशीमठ में भूमि धसाव और भूस्खलन से जहां औली को जोशीमठ से जोड़ने वाला साढ़े चार किमी लंबा रोपवे बंद पड़ गया वहीं मीडिया में इसकी खबरों से पर्यटक भी जोशीमठ व औली को लेकर आशंकित हो गाए। लेकिन अब सड़क के हालात तो काफी बेहतर है। देहरादून और ऋषिकेश से 7 घेंटे में औली या जोशीमठ पंहुचा जा सकता है। औली में जीएमवीएन की चेयर कार से टॉप तक पहुंचा जा सकता है। चार चेयर कार में हर कार में एक बार चार लोग जा सकते हैं। एक व्यक्ति का ane जाने का टिकट 500 का है। ऊपर पहुंच कर प्रशिक्षित गाइड की मदद से स्कीइंग कर सकते हैं। और वहां विशेष लोकल चटनी के साथ गरमागरम पकोड़े और चाय काफी का आनंद भी ले सकते हैं।

कैसे पंहुचे और कहां रहें
जौलीग्रांट एयरपोर्ट से औली लगभग 270 किमी. वहां से या ऋषिकेश से टैक्सी मिल जाती है। इसके अलावा देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार से जोशीमठ के लिए उत्तराखंड परिवहन निगम की सीधी बसे है। ऋषिकेश और हरिद्वार से जीएमओ और दूसरी कंपनियों के बसें भी हैं। जोशीमठ से औली 16 किमी. है। वहां से भी औली के लिए टैक्सी मिल जाती है।

जोशीमठ और औली में जीएमवीएन के गेस्ट हाउस हैं। इसके अलावा दोनों ही जगहों पर अलग- अलग रेंज के होटल और होमस्टे भी हैं। जोशीमठ में नरसिंह मंदिर के पास बद्री केदार मंदिर समिति के गेस्ट हाउस भी है। जो काफी सस्ते और साफ सुथरे हैं। इनकी बुकिंग ऑन लाइन भी की जा सकती है। नरसिंह मंदिर में ही कपट बंद होने के बाद बद्रीनाथ की गद्दी भी रहती है। और 6 महीने यहीं विष्णु भगवान की पूजा होती है।

पर्यावरण का रखें ख्याल
कम बर्फबारी की एक खास वजह बदलते मौसम चक्र को भी माना जा रहा है। ऐसे में पर्यावरण का ध्यान भी रखे। कूड़ा जगह-जगह न फैलाएं। स्थानीय गाइड और लोग इसका विशेष ध्यान रखते हैं। वे वहां लकड़ी नहीं जलाते व डस्टबिन रखते हैं।

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