नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात में ऑस्ट्रेलियाई महिला जगततारिणी का जिक्र किया। पीएम ने कहा, वृन्दावन के बारे में कहा जाता है कि ये भगवान के प्रेम का प्रत्यक्ष स्वरूप है। हमारे संतों ने भी कहा है –
यह आसा धरि चित्त में, यह आसा धरि चित्त में,
कहत जथा मति मोर।
वृंदावन सुख रंग कौ, वृंदावन सुख रंग कौ,
काहु न पायौ और।
यानि, वृंदावन की महिमा, हम सब, अपने-अपने सामर्थ्य के हिसाब से कहते जरूर हैं, लेकिन वृंदावन का जो सुख है, यहाँ का जो रस है, उसका अंत, कोई नहीं पा सकता, वो तो असीम है। तभी तो वृंदावन दुनिया भर के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहा है। इसकी छाप आपको दुनिया के कोने-कोने में मिल जाएगी।
आइए जानते हैं कि कौन हैं जगततारिणी जिनकी पीएम मोदी ने सराहना की है।
13 साल वृंदावन में रहकर कन्हैया से लगाया दिल
पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट के लिए चर्चित पर्थ शहर में जगततारिणी ने सेक्रेड इंडिया गैलरी बनाई है जो बेहद मशहूर है। मेलबर्न में पैदा हुई जगततारिणी को इसकी प्रेरणा उन्हें तब मिली, जब वह भारत आईं और कृष्ण प्रेम में 13 साल वृंदावन में रहीं। जगततारिणी अपने देश लौटने के बाद भी वृंदावन को भूल नहीं पाईं। ऐसे में उन्होंने पर्थ में एक वृंदावन खड़ा कर दिया। यहां आने वाले लोगों को भारत के तीर्थ और संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। वहां पर एक कलाकृति ऐसी भी है, जिसमें भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा रखा है। उन्हें लोग जगततारिणी माता भी कहते हैं।
सैक्रेड इंडिया गैलरी में कृष्ण और राधा से जुड़ी कलाकृतियां हैं, जिन्हें देखने लोग दूर-दूर से आते हैं।
जगततारिणी वैसे तो मेलबर्न में ही पली-बढ़ीं, मगर 21 साल की उम्र में वह थिएटर और आर्ट के अपने शौक की खातिर सिडनी चली गईं। यह उनका घर से बाहर पहला कदम था। इसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और पूरी दुनिया होते हुए वह भारत आईं। उन्होंने 1970 में वृंदावन को अपना ठिकाना बना लिया। उन्हें यहां के लोग, परंपराएं, खानपान, कला ने इतना प्रभावित किया कि वह इसी में रम गईं। वह इस्कॉन संस्था से भी जुड़ गईं।
अपनी भक्ति और कामकाज से लोगों के दिलों में बनाई जगह
1980 के दशक में यह बेहद मुश्किल था कि कोई पश्चिमी देश की महिला वृंदावन की संस्कृति में अपनी पैठ बना सके, मगर उस दौर में भी जगततारिणी ने अपने कामकाज से लोगों के दिलों में जगह बना ली और सबका भरोसा जीता। उन्होंने वृंदावन आने वाले लोगों को वहां की संस्कृति के बारे में बताना शुरू किया और लोगों को इसकी महिमा के बारे में बड़े मन से बतातीं। उन्होंने देश के दूसरे धार्मिक स्थानों की भी यात्राएं कीं। 1996 में वह और उनका परिवार वापस ऑस्ट्रेलिया लौट गया। मगर, उन्होंने अपने देश पहुंचकर भी प्रेम भक्ति की अलख जगाए रखी।