बम बम भोले: आज से शुरू हो रहा पावन सावन महीना, ऐसे करें भगवान शिव की पूजा

सावन का महीना भगवान शिव की कृपा पाने के लिए बेहद खास माना गया है। साल 2024 में सावन आज 16 जुलाई से शुरू हो गया है, जिसका पहला सोमवार 22 जुलाई को पड़ेगा।


हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

आज यानी (16 जुलाई) सोमवार से सावन मास की शुरुआत हो गई है। इस माह में देवों के देव महादेव भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है। कहते हैं सावन का महीना शिवजी को अति प्रिय है। पूरे सावन प्रतिदिन शिवलिंग पर जल अर्पित करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है। सावन 15 अगस्त को खत्म होगा। धार्मिक मान्यता है कि सावन के पावन महीने में भगवान शिव के पूजन-अर्चन से भोले बाबा की कृपा बरसती है।

बारिश का मौसम आरंभ होते ही भक्‍तों के मन में शिवभक्ति की भावनाएं हिलोरे मारने लगती हैं और सभी लोग सावन का इंतजार करना शुरू कर देते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, साल का पांचवां महीना माना जाने वाला सावन का महीना इस बार संक्रांति के साथ 16 जुलाई से शुरू हो गया है और 15 अगस्‍त को इसका समापन होगा। इस बार कुल 4 सोमवार पड़ेंगे।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन भगवान शंकर का महीना माना जाता है। शिव का अर्थ कल्याण है। कहा जाता है कि कण-कण में भगवान शिव का वास है। वेदों ने उनका सगुण और निर्गुण दोनों प्रकार को कहा है। ओडरदानी शिव क्षण में ही पसीज कर भक्तों को अभय प्रदान करते हैं।

सावन माह में पड़ने वाले सोमवार की तिथियां

पहला सावन सोमवार-22 जुलाई 2024
दूसरा सावन सोमवार- 29 जुलाई 2024
तीसरा सावन सोमवार- 5 अगस्त 2024
चौथा सावन सोमवार- 12 अगस्त 2024

सावन में ऐसे करें भगवान शिव की पूजा

सावन के माह में देवों के देव महादेव की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।

सावन का महत्‍व

पौराणिक काल से सावन के महीने में शिवजी की पूजा का विशेष महत्‍व बताया जाता रहा है। यह पूरा महीना जहां शिवजी की पूजा के लिए उत्‍तम माना जाता है तो वहीं हर सोमवार को शिवभक्‍त व्रत करके शिवजी की उपासना करते हैं। मान्‍यता है कि सावन के महीने में भोलेबाबा सर्वाधिक प्रसन्‍न होकर भक्‍तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

भगवान नटराज के डमरू से निकला व्याकरण शास्त्र
भगवान शिव ने नृत्य करके डमरू बजाया। डमरू के बोल से 14 सूत्र निकले। महर्षि पाणिनी ने भगवान शिव की कृपा से इन्हीं डमरू के बोलों (सूत्रों) से व्याकरण शास्त्र की रचना की। इस प्रकार चैदह सूत्रों से वर्णमाला प्रकट हुई। डमरू को चौदह बार बजाने से 14 सूत्रों के रूप में निकली ध्वनियों से ही व्याकरण का प्राकट्य हुआ। इसलिए व्याकरण सूत्रों के आदि प्रवर्तक भगवान नटराज को कहा जाता है।

शिवजी के आभूषणों का रहस्य
भगवान शिव के सिर पर स्थित चंद्रमा अमृत का द्योतक है। गले में लिपटे सर्प काल का प्रतीक है। इस सर्प अर्थात काल को वश में करने से ही शिव मृत्युंजय कहलाये। उनके हाथों में स्थित त्रिशूल तीन प्रकार के कष्टों दैहिक, दैविक और भौतिक के विनाश का सूचक है। उनके वाहन नंदी धर्म का प्रतीक हैं। हाथों में डमरू ब्रह्म निनाद का सूचक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *