- करनपुर चौराहे पर घराट में दूर दूर से गेहूं पीसने आते थे लोग
- चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी दून घाटी का मौसम भी होता था निराला
- अतुल शर्मा ने आत्मकथा दून जो बचपन मे देखा में उकेरा दून का अतीत
प्रदीप बहुगुणा देहरादून
कभी चाय, बासमती चावल और चूना दून घाटी की पहचान थे । आवागमन का मुख्य साधन था तांगा । दून अपने सुहाने मौसम और नहरों के लिए भी फेमस था।
डालनवाला में महान क्रांतिकारी एमएन राय और प्रसिद्ध लेखक भगवत शरण उपाध्याय, अभिनेत्री जोहरा सहगल व लेखिका कुर्तुलेन हैदर रहते थे। प्रसिद्ध सितारवादक उस्ताद विलायत खां व विचित्र वीणा वादक अजीत सिंह भी यहाँ की शान थे। प्रसिद्ध साहित्यकार अतुल शर्मा ने अपनी आत्मकथा दून जो बचपन में देखा में दून के अतीत का सजीव चित्रण किया है।
बुधवार को दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में डॉ.अतुल शर्मा से उनकी पुस्तक पर विवेक डोभाल ने बातचीत की। अतुल शर्मा ने अपनी आत्मकथा में देहरादून की 60 व 70 के दशक की स्मृतियों को बहुत ही रोचक तरीक़े से उकेरा है। अतुल शर्मा ने बताया कि उनका जन्म परेड ग्राउंड और कला केन्द्र के पास लिटन रोड मे हुआ था जिसे अब सुभाष रोड कहते हैं। घर के सामने नहर बहती थी। सड़क के दोनों ओर फूलों और फलों के बाग थे । चारों ओर पहाडो़ से घिरी दून घाटी अपने मौसम के कारण प्रसिद्ध थी । रिस्पना नदी पर पुल नही था बरसात मे नदी का बहाव खत्म होने तक प्रतीक्षा की जाती। ईस्ट कैनाल रोड की नहर जो अब ढक दी गयी है उसमें नहाने और दूर तक बहते चले जाने में एक अलग ही सुख मिलता था । करनपुर चौराहे से लगे सर्वे ऑफ इन्डिया की ओर से जो नहर चलती वह जाखन से आती थी ।चौराहे के पास ही पनचक्की थी जिसमें गेहूं पिसाने दूर दूर से लोग आते थे।
डालनवाला और अन्य जगहों पर कोठियों मे आम और लीची के पेड़ होते थे । फलों की रखवाली के लिए रखवाले पेड़ के ऊपर कनस्तर बांधते और नीचे तक लटकी रस्सी खींचते तो कनस्तर के भीतर लगा लोहे का टुकड़ा बजता और पंछी उड़ जाते ।
उन्होंने बताया कि उनके घर पर साहित्य, सामाजिक, राजनीतिक, गोष्ठियाँ होती रहती थी। पिताजी देश के प्रसिद्ध स्वाधीनता संग्राम सेनानी एवं राष्ट्रीय धारा के प्रमुख कवि थे तो महत्वपूर्ण शख्सियतें आती रहतीं। जिनमें महापंडित राहुल सांकृत्यायन, महावीर त्यागी, चंद्रावती लखनपाल, मास्टर राम स्वरूप, विरेंद्र पांडे, चौधरी सत्येन्द्र सिह, नरदेव शास्त्री, भक्त दर्शन, सुन्दर लाल बहुगुणा आदि । लोहे की बाल्टी मे आम रखे जाते और सभी उन्हे चूस कर खाते और ठहाके लगाते । तब यहां चाय बागान बहुत थे और बासमती की महक हर गांव से आती थी। आवागमन का मुख्य साधन रहता था तांगा । झंडे का मेला आकर्षण का केंद्र होता था साथ ही यहाँ की प्रसिद्ध क्वालिटी चौकलेट का स्वाद अलग ही होता था।
कार्यक्रम के दौरान बहुत से लोग उपस्थित थे। जिनमें दून पुस्तकालय के युवा पाठक,श् निकोलस हॉफ़लैंड, डॉ.योगेश धस्माना, रविन्द्र जुगरान, सुन्दर सिंह बिष्ट सहित अनेक साहित्यकार, लेखक व रंगकर्मी शामिल थे।