दूसरे की बुराई देखने से पहले अपने को टटोलो: ‘हमारे बच्चे लौटकर आएंगे कि नहीं?’

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज भाद्रपद की 30 गते है।

‘हमारे बच्चे लौटकर आएंगे कि नहीं?’

‘हमारे बच्चे लौटकर आएंगे कि नहीं?’ यह सवाल आजकल बहुत सारे माता-पिता का रहता है। अब इस सवाल के पीछे के दृश्य में चलते हैं कि इनके बच्चे गए कहां? दरअसल इस समय बच्चों को खूब लिखाने-पढ़ाने का ट्रेंड है। बच्चे विदेश चले गए।

वो माता-पिता को बड़े नगर में या विदेश बुलाना चाहते हैं। वो आ नहीं पा रहे हैं, माता-पिता का जाने का मन नहीं है। लिहाजा भारत में कई घर इस समय सूने हो गए। हर दसवें घर में बुजुर्ग अकेले मिल जाएंगे। नन्हे परिंदे को, जब उसके पालक उड़ा देते हैं तो वो ये उम्मीद नहीं करते कि वह फिर उसी डाल पर लौटकर आएगा।

ऐसे में क्या करें? बच्चे चाहकर भी नहीं आ सकते और माता-पिता उन्हें याद करते रहते हैं। बचपन में ही माता-पिता अपने बच्चों का कवच और ढाल बनते हैं। उन्हें बुलडोजर पैरंटिंग की तरह तैयार किया जाता है, जबकि होनी थी पैराशूट पैरेंटिंग।

बच्चों की समस्याएं सुलझाते-सुलझाते अब माता-पिता खुद परेशानी और समस्या में आ गए। लेकिन ये कोई नया कर्म नहीं है। दशरथ राम को ऐसे ही याद करते रहे। यशोदा कृष्ण के विरह में एसे ही डूब गईं। इसलिए अब जो विरह माता-पिता के जीवन में आया है, उसको मिटाने का एक तरीका है, ईश्वर भक्ति और बढ़ा दीजिए, तो शायद ये शून्य भर जाएगा।

दूसरे की बुराई देखने से पहले अपने को टटोलो

दूसरे के बुराई देखने से पहले अपने को टटोलो। किसी और की बुराई करने से पहले यह देख लो कि हममें तो कोई बुराई तो नहीं है। यदि हो तो पहले उसे दूर करो। दूसरों की निंदा करने में जितना समय देते हो उतना समय अपने आत्मोत्कर्ष में लगाओ। तब स्वयं इससे सहमत होगे कि परनिंदा से बढ़ने वाले द्वेष को त्याग कर परमानंद प्राप्ति की ओर बढ़ रहे हो।

संसार को जीतने की इच्छा करने वाले मनुष्यो! पहले अपने को जीतने की चेष्टा करो। यदि तुम ऐसा कर सके तो एक दिन तुम्हारा विश्व विजेता बनने का स्वप्न पूरा होकर रहेगा। तुम अपने जितेंद्रिय रूप से संसार के सब प्राणियों को अपने संकेत पर चला सकोगे। संसार का कोई भी जीव तुम्हारा विरोधी नहीं रहेगा।

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