भाई कमलानंद ने छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर उनको श्रद्धासुमन अर्पित किए

जब भी भारतीय इतिहास के महान राजाओं की बात आती है तो छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम जरूर आता है। वीर योद्धा, कुशल शासक, सैन्य रणनीतिकार और मराठा साम्राज्य के संस्थापक। छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता की मिसाल केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में दी जाती है और गर्व के साथ उनका नाम लिया जाता है। उन्होंने मुगलों को परास्त किया था।

Uttarakhand

भाई कमलानंद

पूर्व सचिव, भारत सरकार

छत्रपति शिवाजी महाराष्ट्र के एक प्रमुख राजनेता, साम्राज्य के संस्थापक, और मराठा साम्राज्य के प्रथम छत्रपति थे। वे एक ऐसे साहसी और संकल्पित योद्धा थे, जिन्होंने 17वीं शताब्दी में हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक के रूप में ऐतिहासिक कार्य किया।

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिससे संप्रभु और शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य की नींव पड़ी। यह साम्राज्य गुप्त, मौर्य, चोल, अहोम और विजयनगर साम्राज्य की ही तरह शक्तिशाली, सुसंगठित और सुशासित था। विभाजित और पराजित हिंदू समाज निराश और कुंठित था। मुगल शासन ने उसे असहाय, आत्मविश्वासहीन और अस्थिर बना दिया था। भारत का बौद्धिक परिदृश्य बंजर हो रहा था और सांस्कृतिक सूर्य अस्ताचल की ओर था। शिवाजी ने एक महान हिंदवी साम्राज्य की स्थापना कर न केवल हिंदुओं की सुप्त चेतना को जागृत किया, बल्कि उन्हें संगठित करते हुए विभाजनकारी और दमनकारी मुगल शासन को खुली चुनौती भी दी। उन्होंने भारतीय अस्मिता, सनातन संस्कृति को पुनर्जीवित करने और मंदिरों के संरक्षण और निर्माण कार्य पर सर्वाधिक बल दिया।

छोटी उम्र में ही चुनौतियों का सामना करते हुए कई युद्ध लड़े और अपना पूरा जीवन धर्म की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया था। शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को मराठा परिवार में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई थीं। उस दौर में भारत मुगल आक्रमणकारियों से घिरा हुआ था।

शिवाजी ने छोटे-छोटे किलों का रणनीतिक तंत्र बनाते हुए ‘किले हमारी ताकत हैं’ का सूत्रवाक्य दिया। किलों ने सेना के लिए महत्वपूर्ण संचालन-केंद्रों के रूप में कार्य किया, इससे वे अधिक साधनसंपन्न, शक्तिशाली और स्थापित शत्रु-शक्तियों को चुनौती देने और उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम हुए। समुद्री सुरक्षा के सामरिक महत्व को स्वीकार करते हुए उन्होंने एक दुर्जेय नौसैनिक बेड़ा बनाया।

शिवाजी की विशिष्टता सैन्य विजय के अलावा सुशासन के क्षेत्र में भी थी। स्थानीय शासन, स्वशासन, त्वरित और निष्पक्ष न्याय प्रणाली और सुव्यवस्थित और समुचित राजस्व संग्रह उनके सुशासन की आधारशिला बने। सत्ता के विकेंद्रीकरण द्वारा लोककल्याण, सम्मान और सुरक्षा हिंदवी स्वराज्य की पहचान थे। उन्होंने व्यक्ति-केंद्रित शासन के स्थान पर व्यवस्था-आधारित शासन के सृजन पर बल दिया।

उनकी एक उल्लेखनीय पहल ‘अष्ट प्रधान’ या आठ मंत्रियों की परिषद का गठन था। इस परिषद में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। नीति-निर्माण और कार्यान्वयन में उनकी निर्णायक भूमिका होती थी। विचार-विमर्श पर आधारित सामूहिक और सहकारी निर्णय-प्रक्रिया ने शासन को पारदर्शी, जवाबदेह और संवेदनशील बनाया। मां जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास की शिक्षा से प्रेरित होकर शिवाजी ने सभी हिंदुओं की एकता को प्रोत्साहित किया और ‘सनातन धर्म’ का प्रचार किया। कुल मिलाकर हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक शिवाजी आधुनिक भारत की नींव रखने वाले एक प्रतापी सम्राट थे। उन्होंने भारत को एक नई दिशा दी।

छल से शिवाजी को बनाया था बंदी

जब शिवाजी के पराक्रम, गोरिल्ला युद्ध में पारंगत होने और युद्ध में कुशल रणनीति से जुड़े किस्से बढ़ने लगे तो औरंगजेब डर गया और संधि वार्तालाप के लिए शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया। औरंगजेब ने छल से शिवाजी को बंदी तो बना लिया लेकिन वह ज्यादा दिन उनके कब्जे में न रहे और फल की टोकरी में बैठकर मुगल बंदीगृह से भाग निकले। इसके बाद उन्होंने मुगल सल्तनत के खिलाफ जंग छेड़ दी।

शिवाजी द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध

तोरणा फोर्ट की लड़ाई (1645) पुणे में स्थित तोरणा किला प्रचंडगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। 1645 में यहां हुई लड़ाई का हिस्सा शिवाजी भी थे। तब उनकी उम्र 15 साल थी। छोटी उम्र में ही अपना युद्ध कौशल दिखाते शिवाजी ने इसमें जीत दर्ज की थी।
प्रतापगढ़ का युद्ध (1659) ये महाराष्ट्र के सतारा के पास प्रतापगढ़ किले पर लड़ा गया था। इस युद्ध में शिवाजी ने आदिलशाही सुल्तान के साम्राज्य पर आक्रमण किया और प्रतापगढ़ का किला जीत लिया।
पवन खींद की लड़ाई (1660) महाराष्ट्र के कोल्हापुर के पास विशालगढ़ किले की सीमा में ये युद्ध बाजी प्रभु देशपांडे और सिद्दी मसूद आदिलशाही के बीच लड़ा गया।
सूरत का युद्ध (1664): गुजरात के सूरत शहर के पास ये युद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल सम्राट इनायत खान के बीच लड़ा गया। शिवाजी की जीत हुई।
पुरंदर का युद्ध (1665) इसमें शिवाजी ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।
सिंहगढ़ का युद्ध (1670) इसे कोंढाना के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। मुगलों के खिलाफ लड़कर शिवाजी की फौज ने पुणे के पास सिंहगढ़ (तत्कालीन कोंढाना) किला जीता था।
संगमनेर की लड़ाई (1679) मुगलों और मराठाओं के बीच लड़ी गई ये आखिरी लड़ाई थी जिसमें मराठा सम्राट शिवाजी लड़े थे।

शिवाजी को छत्रपति की उपाधि कैसे मिली?

शिवाजी को कई उपाधियां मिली थीं। 6 जून, 1674 को रायगढ़ में उन्हें किंग ऑफ मराठा से नवाजा गया। इसके अलावा छत्रपति, क्षत्रियकुलवंतस, हिन्दवा धर्मोद्धारक जैसी उपाधियां उनकी वीरता के कारण दी गईं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

आदिलशाह का षड्यंत्र: बीजापुर के शासक आदिलशाह ने एक षड्यंत्र के तहत उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाई। इसमें शिवाजी तो बच गए, लेकिन उनके पिता शाहाजी भोसले को आदिलशाह ने बंदी बना लिया। शिवाजी ने हमला करके पहले अपने पिता को मुक्त कराया। फिर पुरंदर और जावेली के किलों पर भी अपना अधिकार कर लिया।

  • उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई जंग लड़ी और जीतीं।
  • उनकी गुरिल्ला युद्ध कला दुश्मनों पर भारी पड़ती थी।
  • उनकी नीतियों, सैन्य योजनाओं और युद्ध प्रतिभा की वजह से सब उनका लोहा मानते थे।
  • उनकी शक्तिशाली सेना की वजह से वे महाराष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता बने।
  • औरंगजेब का धोका: औरंगजेब ने शिवाजी को धोके से कैद कर लिया था। लेकिन अपनी अक्लमंदी और चतुराई से वे कैद से छूट गए और फिर औरंगजेब की सेना के खिलाफ युद्ध किया। पुरंदर संधि के तहत दिए हुए 24 किलों को वापस जीत लिया

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