भाई कमलानंद ने आईएनए के अध्यक्ष वाईपी सिंह को लिखा पत्र

भाई कमलानंद

Uttarakhand

पूर्व सचिव, भारत सरकार


वाईपी सिंह जी, प्रणाम। आपका इंडियन नर्सरीमेन ऐसोसिएशन (एनआईए) सरकार से बिना कोई अनुदान लिए लाखों लोगों को स्वरोजगार दे रहा है, जो कि सराहनीय प्रयास है। जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और हरियाली वास्तव में उपयोगी है। एक पेड़ अपने जीवनकाल में न जाने कितने दूसरे जीवों और पर्यावरण को भी बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पुरातन पेड़ सैकड़ों-हजारों वर्षों से समय के गवाह रहे हैं। पेड़ जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ ही जलवायु में आ रहे बदलावों का सामना करने में हमारे मददगार हैं। ऐसे में संकट के दौर में स्वस्थ पर्यावरण के निर्माण के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने में सभी की भागीदारी बन जानी चाहिए।

नर्सरी व्यवसाय को बढ़ावा देने में आईएनए की उपलब्धियां सराहनीय रही है। मैं आपके सगठन के साथ पिछले चार साल से जुड़ा हूं। कुछ साल पूर्व आपकी ओर से आयोजित की गई एक कांफ्रेंस में भी मैंने प्रतिभाग किया था। उस समय मैंने नर्सरी व्यवसाय में छिपी संभावनाओं को लेकर मैंने आपको एक नोट लिख कर दिया था।

औषधीय पौधों का बाजार वैसे तो कई सालों से लगातार ऊपर जा रहा है लेकिन कोरोना के दौर में यह मार्केट सबसे ऊपर निकल गया है। औषधीय पौधों की मांग लगातार बढ़ रही है।होटल, मॉल, व्यापारिक प्रतिष्ठान जैसी जगहों पर गार्डन विकसित करने का भी चलन है लिहाजा फल-फूल, सजावटी पौधों, औषधीय व सुगंधीय पौधों की नर्सरी के कारोबार की संभावनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में नर्सरी खोलना काफी लाभदायक हो चुका है। नर्सरी में पौधे तैयार करना, टिश्यु कल्चर लैब बनाकर लाखों पौधे तैयार करना, लॉन की घास, गमलों की खाद और पैकिंग सामग्री बेचने जैसे कामों को रोजगार के अच्छे अवसर के तौर पर देखा जा सकता है।

इंडियन नर्सरी ऐसासिएशन पर्यावरण संरक्षण के साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए पंचगव्य विद्यापीठम् के साथ मिलकर पिछड़े ईलाकों और पलायन के कारण खाली हो चुके गांवों में देशी गाय को जोड़ते हुए पर्यावरणीय विकास का एक ढांचा बनाकर उद्यम का नया ढांचा तैयार कर सकता है। विशेष रूप से यह कम क्षेत्रफल की जमीन वाले लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है।

बता दें, कि उत्तराखण्ड में कई गांव पलायन के कारण खाली हो गए है। उन गावों को बद्री गाय के गांव बना दिया जाए तो गो संरक्षण के साथ ही रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकते हैं। इन खाली गांवों में गाय के साथ ही नर्सरी का व्यवसाय शुरू किया जा सकता है। इसे शुरू करने के लिए पैसा कोओपरेटिव में उपलब्ध है। ऐसे में योजना शुरू करने के लिए धन की समस्या आड़े नहीं आएगी।

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