भाई कमलानंद
पूर्व सचिव भारत सरकार
चौरासी लाख योनियों के बाद मानव जन्म मिलता है, ऐसा धर्म ग्रंथ कहते हैं। मनुष्य योनि के भोग और कर्म दोनों पक्ष है। भोग याेनि है देव योनि। मनुष्य के अलावा सभी योनियां भोग योनियां है। इनके कर्मों से पाप और पुण्य की उत्पत्ति नहीं होती। मनुष्य पाप और पुण्य को भोगता भी है और वह जो कर्म कर करता है उससे पाप पुण्य की उत्पत्ति भी होती है। मनुष्य गतिमान है। वह ऊर्ध्वगति भी कर सकता है और अधोगति भी। हर मानव के अंदर असीमित शक्ति छिपी हुई है, लेकिन वह उसे भुला बैठा है।
रामायण में एक श्राप के कारण हनुमान जी शापित हैं। जब तक कोई उन्हें उनके बल का स्मरण नहीं कराता वे अपनी अनंत शक्ति के बारे में जान नहीं पाते। जामवंत उन्हें याद दिलाते हैं, किसलिए तुम्हारा अवतार हुआ है? तुम्हारे बिना कौन इस कार्य को कर सकता है? जामवंत को हनुमानजी के शापित होने का पता है। आज के दौर में मानव अपनी शक्तियों को भुला बैठा है। जब वह अपने अंदर की ऊर्जाओं को जान जाता है, तो तब उसे लगता है कि मैं अपने को क्या माने बैठा था। यह स्थिति तभी बनती है जिसकी ओर इकबाल ने संकेत किया है-
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से पूछे बता तेरी रजा क्या है।
हम वास्तव में परमात्मा ही तो हैं। अहं ब्रह्मास्मि (मैं ब्रह्म हूं) सोहम (वह मैं ही तो हूँ)। इन वाक्यों को सुनकर हम अक्सर भर्मित हो जाते है- क्या मैं सच में अनंत शक्ति संपन्न हूँ। इस बारे में सशंकित हो उठते हैं। ऐसा मानना स्वभाव बन चुका है हमारा। शेर का बच्चा भेड़ों में मिल गया। स्वयं को भेड़ मानने लगा। जैसा मानने लगा-वैसा व्यवहार करने लगा। अपने अस्तित्व को ही नकार दिया। जब भेड़ माने बैठे शेर को पहली बार किसी ने कहा होगा कि वह भेड़ नही शेर है। असल में तब उसमें भी ऐसा ही प्रश्न उठा होगा। इसी तरह जब कोई मनुष्य में अनंत संभावनाओं की बात करता है तो उसके गले नहीं उतरती यह बात वह तो स्वयं को शांत माने बैठा है।
तो दोस्तो! क्यों न हम खुद ही अपने जामवंत बने। अपने भीतर के जामवंत को जगाइए और अपने आप को प्रेरित करें। अपने आप को आगे बढ़ाने के लिए इसे किसी दूसरे की आवश्यकता नहीं रहनी चाहिए। अपनी शक्ति को पहचानिए और कुछ नया करने का संकल्प कर डालिए।