हिमशिखर खबर ब्यूरो
चाणक्य नीति को ज्ञान का सागर माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आचार्य चाणक्य की इन नीतियों ने कई युवाओं का मार्गदर्शन किया है और उन्हें सफलता प्राप्त करने में सहयोग किया है। परिवार हर मनुष्य की अमूल्य निधि होती है। परिवार में एकता और प्रेम का भाव बना रहे तो जीवन स्वर्ग से कम नहीं होता। चाणक्य ने संतान को लेकर कुछ ऐसे विचार साझा किए हैं जो एक खुशहाल परिवार को बर्बाद भी कर सकते हैं और कुल का नाम रोशन भी कर सकते हैंं। आचार्य चाणक्य ने कई नीतियों को प्रकृति के उदाहरण से भी कई महत्वपूर्ण गुणों को समझाया है। आइए जानते हैं कैसे एक सूखे पेड़ से सीख सकते हैं गुणी पुत्र के गुण।
एकेनाऽपि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना।
आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक में बताया गया है कि जैसे एक सूखे हुए वृक्ष में आग लग जाने से सारा जंगल नष्ट हो जाता है। ठीक उसी प्रकार समस्त कुल में कितने ही विद्वान क्यों न हो, लेकिन एक कुपुत्र के कारण समस्त कुल का नाम नीचा हो जाता है। इसलिए सभी को सदमार्ग पर चलते हुए कार्य करना चाहिए और विद्या व सद्गुणों का त्याग कभी नहीं करना चाहिए।
जो व्यक्ति गलत कार्य करता है। न केवल समाज में बल्कि उसे भगवान के चरणों में भी शरण नहीं मिलता है। अवगुणों से परिपूर्ण संतान न सिर्फ खुद की बल्कि परिवार की इज्जत पर कालिख पोत देती है। कूकर्म करने वाले संतान के होने से परिवार का जीवन कष्टदायी रहता है। माता-पिता का मान-सम्मान मिट्टी में मिल जाता है। महाभारत का उदाहरण जग जाहिर है, जिसमें दुर्योधन कौरवों के कुल का नाश का कारण बना था।
एकेनाऽपि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना।
आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी।।
कुल का सम्मान बढ़ाने के लिए एक सद्गुणी संतान ही काफी होती है। चाणक्य ने उदाहरण देते हुए बताया है कि धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक भी ऐसा नहीं है जिसे सम्मान या अच्छे व्यवहार के लिए जाना जाए।
चाणक्य कहते हैं कि कई पुत्रों से एक योग्य और बुद्धिवान संतान ज्यादा अच्छी है। जैसे काली रात में चांद निकलने पर अंधेरी रात जगमगा उठती है उसी प्रकार परिवार में सदाचारी और योग्य संतान के होने पर कुल का उद्दार हो जाता है।