बदरीनाथ
विजयदशमी के दिन बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की तिथि घोषित की जाएगी। बदरीनाथ धाम के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल की ओर से भगवान की कुंडली देखकर कपाट बंद होने का दिन तय किया जाएगा। इस मौके पर बदरीनाथ के हक-हकूकधारी गांवों के ग्रामीण भी मौजूद रहेंगे।
भू-वैकुंठ है बदरीनाथ धाम
बदरीनाथ धाम को भू-वैकुंठ कहते हैं। यहां पर नारायण योग मुद्रा में विराजमान हैं। शास्त्र मान्यता है कि नारायण की पूजा छह माह मानव व छह माह देवताओं की ओर से नारद जी करते हैं।
बदरीनाथ धाम को अंतिम मोक्ष धाम भी माना गया है। बदरीनाथ मंदिर में भगवान नारायण की स्वयंभू मूर्ति है। भगवान योग मुद्रा में विराजमान हैं। बदरीनाथ की पूजा को लेकर दक्षिण भारत के पुजारी ही पूजा करते हैं। जिन्हें रावल कहते हैं। मूर्ति को छूने का अधिकार भी सिर्फ मुख्य पुजारी को ही है।
श्रीविष्णु की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है और यह एक मीटर ऊंची है। मान्यता है कि इस मूर्ति को आदि शंकराचार्य ने 8वीं सदी के आसपास नारद कुंड से निकालकर मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया।
केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं मंदिर के मुख्य पुजारी
मंदिर के मुख्य पुजारी केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं। इन्हें रावल कहा जाता है। यह व्यवस्था आदि शंकराचार्य ने स्वयं की थी। इस मंदिर को बदरी विशाल के नाम से पुकारते हैं। इसके पास स्थित अन्य चार मंदिरों योग ध्यान बदरी, भविष्य बदरी, वृद्ध बदरी और आदि बदरी के नाम से पुकारते हैं। इन मंदिरों के समूह को पंच बदरी के रूप में जाना जाता है।