सुपर एक्सक्लूसिव : उत्तराखंड की कमान युवा हाथों में, ऐसे तय किया एबीवीपी कार्यकर्ता से लेकर सीएम तक का सफर

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  • धामी को सीएम बनाकर जातीय के साथ क्षे़त्रीय समीकरण भी साधने की कोशिश
  • राजनीतिक गुरु भगत सिंह कोश्यारी के प्रभाव का भी मिल सकता है लाभ 

हिमशिखर समाचार ब्यूरो

प्रदीप बहुगुणा

विधान सभा चुनाव से ऐन पहले उत्तराखंड की कमान 45 साल के पुष्कर सिंह धामी को सौंपकर भारतीय जनता पार्टी ने एक ऐसा दांव चला है कि विपक्षी दलों और खासकर कांग्रेस को इसका तोड़ ढूंढना मुश्किल हो जाएगा। धामी ने उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली है। धामी अब तक के सबसे युवा सीएम हैं। विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाकर जातीय के साथ क्षे़त्रीय समीकरण भी साधने की कोशिश की है।

अभी तक सीएम और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दोनों गढ़वाल से थे। अब धामी को सीएम बनाने से गढ़वाल और कुमाऊं दोनों को प्रतिनिधित्व मिल गया है। धामी के राजनीतिक गुरु माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का राज्य में और भाजपा कार्यकर्ताओं पर अपना एक अलग असर है और इसका लाभ भी धामी को मिल सकता है।

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उत्तराखंड में ऐन चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के तौर पर जिताऊ चेहरा लाने की भाजपा की पुरानी परंपरा है। वर्ष 2000 में राज्य गठन के वक्त अंतरिम सरकार में भाजपा ने नित्यानंद स्वामी को सीएम बनाया था, लेकिन विधानसभा चुनाव पास आते ही उन्हें हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को सीएम बनाकर चुनावी चेहरा घोषित किया गया। उसके बाद वर्ष 2007 में सत्ता मिलने के बाद मेजर जनरल (रिटायर) बीसी खंडूड़ी को उत्तराखंड का सीएम बनाया गया। लेकिन वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 5 सीटे गंवाने के बाद डाॅ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की सीएम के तौर पर ताजपोशी की गई। फिर जैसे ही विधान सभा चुनाव नजदीक आए निशंक को हटाकर फिर से बीसी खंडूड़ी को मुख्यमत्री बना दिया गया।

प्रदीप बहुगुणा

वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा को बंपर 57 सीटे मिलने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को राज्य की कमान सौंपी गई। रावत के चार साल पूरा करने से 9 दिन पहले ही उन्हें कुर्सी से हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। अब विधान सभा चुनाव के लिए उन्हें भी हटाकर युवा पुष्कर सिंह धामी को कमान सौंपी गयी है।  समझा जा रहा है कि भाजपा हाईकमान ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए धामी पर ‘मिशन 22’ का दांव खेला है। युवाओं के बीच पुष्कर सिंह धामी की अच्छी पकड़ मानी जाती है। लखनऊ में एबीवीपी के माध्यम से छात्र राजनीति से उभरे धामी भाजयुमो अध्यक्ष और फिर भाजपा के उपाध्यक्ष रहे। वे पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी भी रहे।

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पुष्कर सिंह धामी एक ऐसा नाम है जो हमेशा विवादों से दूर रहा। धामी भ्रष्टाचार और विकास संबंधी मुद्दे सड़क से लेकर सदन तक उठाते रहे हैं। उनमें जबर्दस्त सांगठनिक क्षमता है। पिछली विधानसभा में उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया था। पुष्कर सिंह धामी खटीमा से विधायक हैं। 2012 से पहले इस सीट पर कांग्रेसी उम्मीदवार जीतता रहा था। इस सीट को कांग्रेस की सीट समझा जाता था। 2012 में भाजपा ने कांग्रेस से सीट छीनने के लिए युवा धामी को टिकट देकर मैदान में उतारा और धामी न सिर्फ जीते बल्कि उन्होंने दूसरी बार भी सीट बरकार रखी। अब भाजपा हाईकमान ने उन्हें 2022 के विधान सभा चुनाव में पार्टी को विजय दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी है।

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