स्वामी ईश्वरानंद सरस्वती
दीपावली प्रकाश का पर्व है। इस पर्व को मनाए जाने की मूल अवधारणा अधर्म पर धर्म की विजय और अंधेरे पर उजाले की जीत है। दीपावली यही चरितार्थ करती है- ‘‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’’।
जिस प्रकार एक दीपक अनेकों दियों को जला सकता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित किसी भी मनुष्य की आत्मा दूसरी आत्माओं को भी आध्यात्मिक प्रकाश से प्रज्ज्वलित कर सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है। हिंदू दर्शन में इस भौतिक शरीर और मन से परे अगर कुछ है तो वह शुद्ध अनंत और शाश्वत है, जिसे आत्मा कहा जाता है।
दीपावली आध्यात्मिक अंधकार को आंतरिक प्रकाश से नष्ट करने का भी त्योहार है। दीपक जलने से चारों ओर प्रकाश फैलने से अंधकार रूपी नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है। कार्तिक माह में आंधी का प्रकोप न होने के कारण आंगन में रखा हुए दिए बुझते नहीं हैं। इससे यह बोध होता है कि कामना-वासना की हवा का प्रकोप न हो तो अंतर की ज्योति निश्चल रहती है और अंतर जगत प्रकाशमय होता है।