हर्षमणि बहुगुणा
दीपावली शब्द से ही मालूम होता है दीपों का उत्सव। इसका शाब्दिक अर्थ है दीपों की पंक्ति। ‘दीप’ और ‘आवली’ की संधि से बने दीपावली में दीपों की चमक से अमावस्या की काली रात भी जगमगा उठती है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं. ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ कथन को सार्थक करता है दीपावली।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। राजा राम के लौटने पर उनके राज्य में हर्ष की लहर दौड़ उठी थी और उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाएं। तब से आज तक यह दिन भारतीयों के लिए आस्था और रोशनी का त्यौहार बना हुआ है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है।
दीपोत्सव भारतीयों का अभूतपूर्व पर्व है, दीपावली की विभिन्न मान्यताएं हैं। कहीं महाराज पृथु द्वारा पृथ्वी का दोहन कर देश को धन धान्यादि से समृद्ध बना देने के उपलक्ष्य में दीपावली मनाए जाने का उल्लेख मिलता है तो कहीं आज के दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव होने की प्रसन्नता में जन मानस द्वारा दीपोत्सव मनाने का वर्णन है। कहीं श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के बाद अमावस्या के दिन भगवान श्री कृष्ण का अभिनन्दन दीपमाला के रूप में सुसज्जित किया, तो कहीं पाण्डवों के वनवास से सकुशल लौटने पर प्रजा जनों द्वारा उनके अभिनन्दन दीपमालिका से किया, तो कहीं महाराज विक्रमादित्य की विजयोपलक्षित दीपमालिका से अभिनन्दन और यह सर्व विदित है कि राम के अवध लौटने की खुशी में दीपावली मनाई जाती है। आज हमारे आर्ष ऋषियों की यह देन हमारा मार्गदर्शन कर रही है और हम इस पर्व का भरपूर आनन्द ले रहे हैं। इस पुनीत पर्व पर हम प्रसन्नता का मिष्टान्न आपस में वितरित कर उस आनन्द को कई गुना बढ़ा सकते हैं।
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