देवभूमि: भेड़ और बकरियों का मेला देखने उमड़ता है आस्था का सैलाब, भेड़-बकरियां करती हैं मंदिर की परिक्रमा

हिमशिखर ब्यूरो 

Uttarakhand

नई टिहरी । देवभूमि उत्तराखंड के सीमांत गांव में भेड़ और बकरियों का देवता से अदभुत मिलन होता है। भेड़, बकरियों और आराध्य देव सोमेश्वर महादेव का मिलन देखने के लिए आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है। हम बात कर रहे हैं टिहरी जिले के विकासखंड भिलंगना के सीमांत गांव गेंवाली की।

गेंवाली गांव के सोमेश्वर मंदिर में एक बार फिर से भेड़, बकरी परिक्रमा मेला आयोजित किया गया। इस बार भी मेले में सैकड़ो की संख्या पहुंची भेड़ और बकरियों ने सोमेश्वर मंदिर की परिक्रमा कर सुख और समृद्धि का आशीर्वाद लिया ।वर्षों से चली आ रही परम्परा को संजोने के लिए ग्रामीणों ने एक दिवसीय भेड़ परिक्रमा मेले का भव्य आयोजन किया । जिसमें बासर पट्टी से लेकर तमाम दूर दराज के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। क्षेत्र के साथ परिवार की खुशहाली की कामना की।

पूर्व ग्राम प्रधान बचन सिंह ने बताया कि सोमेश्वर देवता क्षेत्र के आराध्य देव हैं। भेड़ परिक्रमा सदियों से चली आ रही परम्परा है। उच्च हिमालय क्षेत्र में जब बर्फवारी शुरू हो जाती है तो ग्रामीणों के भेड़ बकरियों नीचे की तरफ आना शुरू कर देती है। इसी समय आराध्य देव से क्षेत्र की खुशहाली की मनोकामना के लिए मंदिर के चारो और सेकड़ो की तादाद में भेड़,बकरी परिक्रमा लगाते हैं। यह भी मान्यता है कि भेड़ परिक्रमा से सोमेश्वर देवता को प्रसन्न होकर क्षेत्र के लोगों को आरोग्य सुख का वरदान देते हैं। भेड़ बकरियों में कोई बीमारी न फैले साथ ही हिमालय क्षेत्र में सोमेश्वर देवता रक्षा कारक भी माना जाता है।

सर्दी शुरू होने पर जब भेड़ बकरी पालक 6 माह प्रवास के बाद ऊंचे हिमालय क्षेत्रों से अपने गांव लौटते हैं तो सबसे पहले भेड़ बकरियों के साथ अपने आराध्य देव सोमेश्वर देवता की परिक्रमा कर आभार व्यक्त करते हैं की आपकी कृपा से जंगल से हम सभी सकुशल घर लौटे हैं।

पूर्व में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ चुकी हेमा गुनसोला का कहना है कि मेले और त्योहार एक-दूसरे से मिलने के अवसर होते है । प्राचीन समय में, जब संचार और परिवहन की कोई ऐसी सुविधाएं नहीं थीं, तो इन मेलों और त्योहारों ने रिश्तेदारों और दूर दूर भौगोलिक स्थानों पर रहने वालों के साथ मुलाकात जैसे सामाजिक सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इन आयोजनों के पीछे धार्मिक महत्व और सामाजिक संदेश जैसे सामाजिक महत्व होते है। घनसाली क्षेत्र के अधिकांश त्योहार पौराणिक परंपराओं पर आधारित हैं। उन्होंने सदियों पुरानी संस्कृति और त्योहारों को बचाएं रखने के लिए गेंवाली गांव के लोगों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।

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