‘ध्याण्यिों कु देवता’: जानिए, कैसे धन सिंह बन गए रथी देवता

 

Uttarakhand

विनोद चमोली

धन सिंह रथी ध्याण्यिों कु देवता …जागर की ये पंक्तियां प्रसिद्ध श्री रथी देवता की महिमा का गुणगान कर रही हैं। टिहरी जनपद के अलेरु गांव के किल्याखाल में स्थित धन सिंह रथी देवता की याद में 7 गते बैशाख को लगने वाला विशाल मेला उत्तराखण्डी संस्कृति को आज भी संजोए हुए है। इस दिन क्षेत्र के लोगों के साथ ही दूर-दराज से श्रद्धालुओं का जनसैलाब आस्था के प्रतीक इस मंदिर पर पहुंचता है।

मंदिर में पहले पशु बलि दी जाती थी, लेकिन 1995 में मंदिर समिति ने बलिप्रथा पर पूरी तरह से रोक लगा दी। अब लाखों लोगों के आस्था के केंद्र रथी देवता के मंदिर में श्रद्धालु भेंट स्वरूप श्रीफल, पंचमेवा चढ़ाते हैं। खास बात यह है कि भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने से इस मंदिर को देश भर में विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है।

चंबा-उत्तरकाशी राष्ट्रीय राजमार्ग पर अलेरु गांव के किल्याखाल में धन सिंह रथी देवता का मंदिर है। यूं तो रथी देवता के प्रति सभी लोगों की अटूट आस्था है। लेकिन खासतौर पर धन सिंह रथी देवता ध्याणियों (मायके पक्ष की बेटियां) के देवता नाम से प्रसिद्ध है। लोगों का मानना है कि संकट आने पर तत्क्षण श्री रथी देवता भक्त जनों के कष्टों को दूर कर देते हैं। यही कारण है कि क्षेत्र की बेटियां शादी के बाद अवश्य ही मंदिर में मत्था टेककर देवता को याद करती हैं।

पहले मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में जातरा देते थे। जातरा का मतलब उस समय भेड़ की बलि से होता था। ऐसे में श्रद्धालुओं ने देवता से श्रीफल की भेंट से खुश होने की प्रार्थना की। 1995 में मंदिर जीर्णोद्धार के लिए समिति का गठन किया गया। जिस पर समिति ने सर्वप्रथम बलि प्रथा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। तब से श्रद्धालु देवता को श्रीफल, पंचमेवा के साथ ही झंडी, टोपी व घंटा श्रद्धानुसार चढ़ाते हैं।

7 गते बैशाख को मंदिर में लगने वाले मेले में पहले क्षेत्र की बेटियां और उनके परिवारी जन ही आते थे। लेकिन धीरे-धीरे देवता के प्रति आस्था बढ़ने पर क्षेत्र के कुटुंब परिवार के साथ-साथ रिश्तेदार, सगे.संबंधी व मित्रजनों का बड़ी तादाद में मंदिर स्थल पर पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। मंदिर के प्रति आस्था बढ़ने लगी तो कालांतर में छोटे मंदिर की जगह विशाल मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया है।

कौन थे धन सिंह अधिकारी

अलेरु गांव निवासी धन सिंह अधिकारी का जन्म 1887 को साधारण परिवार में हुआ, जो अपने जीवन यापन के लिए पशुपालन करते थे। एक समय ऐसा आया जब उनके गांव में हैजा जैसी घातक बीमारी फैल गयी। गांव के कई लोगों की हैजा की चपेट में आने से मौत हो चुकी थी। 1918 को धन सिंह अधिकारी भी हैजाग्रस्त हो गए और उनकी मृत्यु हो गयी। उस समय हैजा से मृत्यु होने पर इंसान को जलाने की जगह दफन किया जाता था।

इस तरह हुई मंदिर की स्थापना

हैजा से मौत के बाद धन सिंह अधिकारी अपने भक्तों की समस्याएं दूर करने लगा। बाद में धन सिंह ग्रामीणों के शरीर में अवतरित होने लगे, जिससे पता चला कि शुभ पुण्य कर्म के कारण धन सिंह अधिकारी को देव रूप प्राप्त हो चुका है। 7 गते बैशाख 1941 को धन सिंह देवता की एक ध्याणी ने मनोकामना पूरी होने पर गांव में एक छोटा सा मंदिर बनाया। इसके बाद धीरे-धीरे भक्तों की आस्था बढ़ने पर मंदिर अब विशाल रूप ले चुका है। तब से 7 गते बैशाख को मंदिर में मेले की परम्परा चली आ रही है।

धन सिंह रथी देवता के चमत्कारों की हैं अनगिनत कहानियां 

धन सिंह देवता अपनी ध्याणियों के दुःख और कष्टों को दूर करने में देर नहीं लगाते। लेकिन जरूरत है कि सच्चे दिल से उनको पुकारने की। श्री रथी देवता मंदिर सेवा समिति के अषाढ़ सिंह अधिकारी,  पृथ्वी सिंह अधिकारी और दीपक अधिकारी देवता के चमत्कारों के कई किस्से सुनाते हैं। कहते हैं कि एक बार पास के एक गांव की महिला भयंकर बीमार हो गई। अस्पताल से इलाज कराने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिला। एक दिन मंदिर में आकर श्रीफल फोड़ा और बीमारी दूर करने की मन्नत मांगी। फिर क्या था, उसकी बीमारी छूमंतर हो गई। कहते हैं कि चमत्कारों के किस्सों पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है।

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