शुभ दीपावली: अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व-दीपावली,

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
अर्थात् इस प्रार्थना में अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की कामना की गई है। दीपों का पावन पर्व दीपावली भी यही संदेश देता है। यह अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है। दीपावली का अर्थ है दीपों की श्रृंखला। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों ‘दीप’ एवं ‘आवली’ अर्थात ‘श्रृंखला’ के मिश्रण से हुई है।

आज दिवाली के पवित्र अवसर पर हम सभी सुख और समृद्धि की कामना करेंगे। अंधकार के विरुद्ध अनवरत संघर्ष के प्रतीक-स्वरूप करोड़ों दीपक जलाए जाएंगे। खुशहाली और रोशनी दोनों की नई उम्मीदों के बीच ये दिवाली आई है।

आज हम सभी गणेश और लक्ष्मी का पूजन करेंगे तो यही प्रार्थना होनी चाहिए कि समृद्धि सभी दरवाजों तक पहुंचे, जिससे सबका अभाव दूर हो। हमारी प्राचीन सभ्यता ने गणेश और लक्ष्मी के साथ-साथ पूजन की अद्भुत परिकल्पना की। गणेश विवेक के प्रतीक हैं, तो लक्ष्मी समृद्धि की देवी हैं। दोनों की एक साथ आराधना में गूढ़ संदेश निहित है। समृद्धि संपन्न्ता के लिए आवश्यक है। परंतु धन-दौलत की चाहत में हम अंधे हो गए, तो सुख हमसे दूर ही रहता है। इसीलिए हम गणेश की पूजा करते हैं, ताकि हमारी बुद्धि जागृत रहे।

हम आज प्रकाश को दूर-दूर तक फैलाने का प्रयास करते हैं। संभवत: इस संदेश को आगे बढ़ाने के लिए कि हम सिर्फ अपनी खुशहाली से संतुष्ट न हो जाएं। बल्कि मानव कल्याण के प्रति अपने दायित्व को लेकर जागरूक रहें। धन की सार्थकता तभी है, जब उसका उपयोग वृहत्तर उद्देश्यों के लिए हो। हमारे धर्मग्रंथों ने सिखाया है कि धन की विवेकपूर्ण चाहत एवं उसका उपयोग शांति एवं प्रसन्‍नता की तरफ ले जाता है। जबकि विवेक खो जाए, तो फिर वही चाहत अंधी होड़ में तब्दील हो जाती है, जो चारित्रिक पतन और सामाजिक विनाश का कारण बनती है।

इसीलिए आज अपने-अपने घरों में जब हम पूजा करें, तो अपने आराध्य से भौतिक सुखों के साथ-साथ संयम और संतुलित अंतर्दृष्टि की याचना भी हमें अवश्य करना चाहिए। यह दृष्टि अपने देश की मार्गदर्शक बने, तो हम अपने संसाधनों के न्यायपूर्ण बंटवारे की कला जरूर सीख लेंगे, जिसकी आज के दौर में अत्यधिक आवश्यकता है। भारत भूमि, यहां की प्रतिभाएं और हमारी उद्यम भावना धन उत्पन्न् करने में पूर्ण सक्षम हैं। इसके लिए जो अनुकूल अवसर चाहिए, वह आज हमारे क्षितिज पर हैं। हमें सुनिश्चित केवल यह करना है कि अपने श्रम और कौशल से हम जो कुछ अर्जित करें, उसका सभी देशवासियों में उचित वितरण करने की उदारता हम में आए।

हमें याद रखना चाहिए कि हमारी परंपरा शुभ-लाभ कहने की है। यानी लाभ के पहले शुभ को महत्व दिया गया। दरअसल, लाभ का उद्देश्य ही शुभ है। यह बुद्धि भारतीय समाज में बनी रहे, हमें इसकी प्रार्थना करनी है। तो आज दीये जलाइए, आतिशबाजी भी कीजिए, किंतु अपने अंतर्मन को प्रकाशित करने के दिवाली में अंतर्निहित संदेशों को विस्मृत न होने दीजिए। ये संदेश ही दीपावली का अर्थ है और उसका उद्देश्य भी। तो आइए, हम सबके शुभ-लाभ की कामना करें

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