विजयादशमी : किसी की भी बुराई मन, कर्म, वचन से न करें, अपने को जहरीला बनने से बचाना है

 

Uttarakhand

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

यदन्त:स्थानिभूतानि यत: सर्वं प्रवर्तते।

यदाह तत्परं तत्त्वं साक्षाद्भगवती स्वयम् ।।

   “जिनके सभी प्राणी भीतर स्थित हैं और सम्पूर्ण विश्व जिनसे प्रकट होता है, जिन्हें परम तत्व कहा गया है, वे साक्षात् स्वयं ‘भगवती’ ही हैं।”

 “आज श्री विजयादशमी बौद्धावतार (दशहरा) है दसविध पापों को धोने का महोत्सव, अपराजिता पूजन, शस्त्र पूजन, नवरात्र पारणा।” इस पर कुछ चर्चा कर अपना मार्ग सुगम बनाया जा सकता है।

शारदीय नवरात्र एवं वासन्तीय नवरात्र आम तौर पर दो नवरात्र मनाने की परंपरा है, वैसे दो गुप्त नवरात्र भी है आषाढ़ शुक्ल पक्ष और माघ शुक्ल पक्ष। पर इनमें विशेष प्रचलित नवरात्रों की अपनी विशेषता भी है, वासन्तीय नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा अर्चना के बाद राम का प्राकट्य राम नवमी को और नवरात्र पूजा पूर्ण।

शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा अर्चना के बाद रावण का उद्धार, विजयादशमी को, (रावण को मोक्ष (परम धाम) की प्राप्ति)। राम के अवतरण का आनन्द और रावण की क्रूरता से राहत। यह इन दोनों नवरात्रों की महत्ता ( विशेषता ) है। रावण का पथ — शरीर को ” मैं ” और संसार को “मेरा” मानता है। राम का पथ — आत्मा को “मैं ” और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को आत्मिक दृष्टि से “मेरा” मानता है। षड् रिपु वाला यह शरीर मेरा हो ही नहीं सकता और जब तक विवेक जागृत नहीं, तब तक मैं क्या है?

मैं केवल अहंकार का प्रतीक है! इसीलिए नवरात्रि संयम का सन्देश लेकर आती हैं। भारतीय ऋषियों की अनुपम खोज या उनकी दूर दृष्टि का परिणाम हैं नवरात्र। शायद नवरात्र पांच ज्ञानेन्द्रियों और चार अन्त:करण की वृत्तियों को ठीक (समुचित) करने का एक तरीका हो सकता है, क्योंकि यही हमें उलझाते हैं। यह भी तो माना जा सकता है कि भगवान की कृपा के आगे कोई पाप बलवान नहीं हो सकता। अतः भगवान ‌की कृपा प्राप्त करने के लिए नवरात्र पूजन किया जाना अपेक्षित है , पूजन करना चाहिए।

  “आज विजया दशमी , दशहरा अर्थात् अहंकार रूपी रावण पर विजय प्राप्त करने का सुअवसर। इस वाक्य पर ध्यान केन्द्रित कर जरा विचार किया जाय — ” प्रेम ने मृत्यु से कहा कि मुझे सब चाहते हैं , और तुझसे नफरत करते हैं ? मृत्यु ने कहा कि तू एक ‘छल’ है और मैं एक ‘सत्य’ हूं । और सत्य सदैव ‘कड़वा’ होता है ।”

चिन्तन से बुद्धि का विकास होता है और चिन्ता से बुद्धि का विनाश होता है। संयम और तप हमारे जीवन का श्रृंगार है, यही तो हमारे जीवन को सजाने-संवारने का काम करता है।

आज कल ह्वाट्स्-ऐप एवं फेश – बुक ( सोशल मीडिया) के माध्यम से अच्छी-अच्छी जानकारियां दी जा रही है परन्तु क्या सभी जानकारियां दूसरे के लिए होंगी या कुछ अपने अमल हेतु भी हो सकती हैं। यदि हम उन अच्छाइयों को प्रतिदिन पढ़ें अमल करने का प्रयास करें तो यह दुनिया स्वर्ग से भी सुन्दर बन सकती है। आज रावण का सच्चा अन्त यह है कि यदि हम मन की एक न एक बुराई को समाप्त कर सकें ! अथवा अपना नजरिया ही बदल सकें।

रावण तो ब्राह्मण थे किन्तु बुरी वृत्तियों से राक्षसी स्वभाव हुआ, राक्षसों पर सींग तो नहीं थे बस भावना दूषित और वृत्ति क्रूर ? इससे अच्छा विद्वान भी तमो वृत्ति से संयुक्त। बहुत ही सुन्दर कहा है कि “हर किसी को अपना जैसा ही नहीं समझना चाहिए” वास्तव में व्यक्ति को अपने अन्दर झांक कर देखना चाहिए कि मैं कितने गहरे पानी में हूं, क्या हूं । रावण बनने से बचने का प्रयास।

 आशा है भगवान राम उन सभी की सहायता अवश्य करेंगे तथा उन्हें अच्छे मार्ग पर चलने की प्ररेणा देने के साथ साथ हमारे अंदर के अज्ञान रूपी रावण का उद्धार कर सद् वृत्ति की ओर प्रेरित कर दानव बनने से रक्षित करेंगे। हम किसी की भी बुराई मन, कर्म, वचन से न करें, जहरीला बनने से अपने को बचाना है तो समझिए कि राक्षसी भाव समाप्त हो जाएगा, और यही तो सुधारना है ।

 यह भी विचारणीय है। —

 ‘महाभारत के वन पर्व में कितना अच्छा सन्देश दिया गया है कि ‘किसी दूसरे की निन्दा न करें, अपनी मान प्रतिष्ठा की प्रशंसा न करें। कोई भी गुणवान व्यक्ति पर निन्दा और आत्म प्रशंसा का त्याग किए बिना इस संसार में सम्मानित हुआ हो यह देखा नहीं गया है। ‘

अब्रुवन् कस्यचिन्निन्दामात्मपूजामवर्णयन्।

न कश्चिद् गुणसम्पन्न: प्रकाशो भुवि दृश्यते।।

“आइए एक कदम अहंकार से हट कर आगे बढ़ने का प्रयास किया जाय, यही इस पुनीत पर्व पर करणीय होगा।”

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