हर माह में आने वाली अमावस्या की तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशाग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है।
पंडित उदय शंकर भट्ट
भाद्रपद मास विशेष रूप से कृष्ण भक्ति के लिए उत्तम माना जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों में भाद्रपद मास की अमावस्या को कुशाग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहते हैं। इस अमावस्या का विशेष महत्व है।
आज सोमवार को भाद्रपद मास की अमावस्या है। इसे कुशाग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहते हैं। पुराने समय से इस तिथि पर वर्ष भर में किए जाने वाले धर्म-कर्म के लिए कुश यानी एक प्रकार की घास का संग्रह किया जाता है। इसी वजह से इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं।
कुशा देव कार्य एवं पित्रों के कार्य में प्रयोग की जाती है। खास बात यह है कि श्राद्ध पक्ष में कुश के बिना तर्पण नहीं दिया जाता है। भाद्र मास की अमावस्या को निकाली गई कुशा पूरे वर्ष भर के लिए होती है।
कुशा निकालने के नियम
कुशा एक प्रकार की घास होती है। भाद्रपद की अमावस्या पर कुश घास इकट्ठा की जाती है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन कुशा को निकालने के लिए कुछ नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। ध्यान रखें जो कुश इकट्ठा कर रहे हैं, उसमें पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो। ऐसी कुश देवताओं और पितर देवों के पूजन कर्म के लिए श्रेष्ठ होती है। कुश घास इकट्ठा करने के लिए सूर्योदय का समय शुभ माना जाता है।
कुशा को किसी औजार से ना काटा जाए, इसे केवल हाथ से ही एकत्रित करना चाहिए और उसकी पत्तियां अखंडित होना चाहिए। यानी पत्तियों का अग्रभाग टूटा हुआ नहीं होना चाहिए। कुशा एकत्रित करने के लिए सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके लिए उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें और दाहिने हाथ से एक बार में ही कुशा को निकालें।
ये है कुश का धार्मिक महत्व
धर्म-कर्म में कुश से बने आसन पर बैठने का महत्व है। पूजा-पाठ करते समय हमारे अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा एकत्रित होती है। ये ऊर्जा शरीर से निकलकर धरती में न समा जाए, इसलिए कुश के आसन पर बैठकर पूजन करने का नियम है। कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से मंत्र जल्दी सिद्ध हो जाते हैं। इसके आसन पर बैठकर की गई पूजा जल्दी सफल हो सकती है।
कुशग्रहणी अमावस्या पर करें ये शुभ काम
इस तिथि पर देवी लक्ष्मी के साथ ही भगवान विष्णु की विशेष पूजा करें। पूजा में दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। हनुमान मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। पीपल को जल चढ़ाकर सात परिक्रमा करें। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। इस अमावस्या पर किसी गौशाला में धन और हरी घास का दान भी करना चाहिए। पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए। इस दिन पितरों को तर्पण भी किया जाता है। इससे पितर बहुत प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।