स्वामी कमलानंद (डा कमल टावरी)
पूर्व केंद्रीय सचिव, भारत सरकार
आज स्वामी विवेकांनद की जयंती है, जिसे समूचा देश राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को लक्ष्य प्राप्ति के लिए मूलमंत्र दिया था कि “उठो जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” किसी भी देश और समाज की दशा और दिशा उस राष्ट्र के युवा तय करते है। दरअसल, युवा ही किसी देश के वर्तमान और भूतकाल के सेतु होते हैं, जिनके सकारात्मक ऊर्जा से बदलाव संभव हो पाता है।
अब मूलभूत प्रश्न यह है कि युवा कौन हैं? क्या युवा उम्र से होता है या सोच से ? मेरा पक्का मत है कि उम्र से इसका कोई लेना देना नहीं है। हां बोलने के लिए 25-30 साल की उम्र वाले को युवा कहते हैं। युवा जीवन में थकावट, निराशा, दिशा विहीनता नहीं होनी चाहिए। मेरे हिसाब से युवा वह है जिसमें उमंग, उत्साह, कुछ परिवर्तन करने की चाह, नया करने की प्रबल पराकाष्ठा, सोच प्रगतिशील और आगे के बारे में भी सोचता हो। राष्ट्र और आने वाली पीढियों के बारे में भी चिंतन करता हो। युवा का उम्र से कोई लेना देना नही है।
युवा एक ऐसा शब्द है, जिसमें सबसे बड़ी चीज है कि उसकी सोच क्या है? सोच यदि प्रगतिशील है, समाजवादी है, नया करने का साहस है तो वह युवा ही है। भले ही वह उम्र से 80 वर्ष का क्यों न हो। युवाओं के लिए कई सरकारी प्रगतिशील प्रशिक्षण चल रहे हैं। लेकिन इन प्रशिक्षण लेने के बाद उनको व्यावहारिक स्वरूप भी देना चाहिए। मेरा आम जनमानस से अनुरोध है कि वे स्वयं अपना परीक्षण करें, कि वे किस श्रेणी में आते हैं।
मैं अभी 77 साल का हूं, लेकिन मैं अपने को किसी युवा से कम नहीं आंकता हूं। युवा को समाज में कुछ नया करने वालों से सीखने के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिए। आज के समय में युवाओं में निराशा अधिक झलकती है। अधिकाश युवा ग्रांट, रिबेट, सब्सिडी की लालसा पाले रहते है। बहरहाल आज के युवा के लिए आत्ममंथन का समय है कि आखिरकार वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति में कैसे सफल हो?
इसके लिए उन्हें स्वामी विवेकानंद के आदर्शों पर चलकर ईश्वर पर विश्वास और आत्मविश्वास जागृत करना होगा। विचार का मुद्दा है कि स्वामी विवेकानंद की अपेक्षाओं के मुताबिक युवा वर्ग को ढालने में आखिर कहां चूक हुई?