द्रौपदी का डांडा-2 हिमस्खलन: एक साल बाद बर्फ में दबा मिला लापता पर्वतारोही का शव

हिमशिखर खबर ब्यूरो

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उत्तरकाशी: द्रौपदी का डांडा 2 (डीकेडी) हिमस्खलन त्रासदी के एक साल बाद लापता चल रहे दो प्रशिक्षु पर्वतारोहियों में से एक प्रशिशु का शव नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (NIM) की टीम ने क्रेवास से बरामद किया है जबकि दूसरे की तलाश जारी है। बरामद शव की पहचान ऋषिकेश (देहरादून) निवासी नौसेना के नाविक विनय पंवार के रूप में हुई है। शव को जिला अस्पताल उत्तरकाशी में लाया गया है।

चार अक्तूबर 2022 नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) के इतिहास में वह तारीख थी जिसने निम प्रबंधन को कभी न भूलने वाला गम दिया। निम के प्रशिक्षुओं का दल द्रौपदी का डांडा-2 चोटी आरोहण के दौरान हिमस्खलन की चपेट में आ गया था। दुर्घटना में लापता 02 प्रशिक्षणार्थी में से 01 प्रशिक्षणार्थी का शव NIM द्वारा गत बुधवार को बरामद कर NIM बेस कैंप डोकरानी बामक में लाया गया। आज गुरुवार को शव हेलीकॉप्टर के माध्यम से सेना के हेली से हर्षिल तथा हर्षिल से वाहन के द्वारा उत्तरकाशी लाया गया।

द्रौपदी के नाम पर है डांडा

उत्तराखंड के डांडा-कांठ्यों में पांडव आज भी हैं! लोकविश्वास में, जागरों, पांडव नृत्यों में (देवगान) में नृत्य करते हुए। द्रौपदी भी नाचती हैं। पूजी जाती हैं। उन्हीं के नाम पर द्रौपदी का डांडा है। डांडा यानी चोटी। द्रौपदी की चोटी।

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द्रौपदी का डांडा को डीकेडी (Mt DKD) के नाम से भी जाना जाता है और ये जगह पृथ्वी का प्राकृतिक स्वर्ग कही जाती है।उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से सबसे निकट पड़ने वाला ग्लेशियर डोकरणी बामक भी डीकेडी क्षेत्र में ही है।

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बात करें इस जगह के पौराणिक महत्व की, तो इसका जिक्र महाभारत में भी है। कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव उत्तराखंड आ गए थे। वो द्रौपदी का डांडा नाम के पर्वत पर पहुंचे और यहीं से वो स्वर्ग गए। पांडवों के साथ स्वर्गारोहण कर रहीं द्रौपदी को स्वर्ग जाते समय थकान महसूस हुई। जिस पर पांडवों ने कुछ दिन यहाँ पर विश्राम किया था। इस जगह से पूरा हिमालय क्षेत्र दिखता है, ऐसे में इसका नाम ‘द्रौपदी का डांडा’ रख दिया गया। इसके अलावा यहां पर खेड़ा ताल स्थित है, जिसे नाग देवता का ताल कहा जाता है। हर साल सावन में इसकी विधि-विधान से पूजा होती है।

18 हजार फीट है ऊंचाई

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आपको बता दें कि द्रौपदी का डांडा की ऊंचाई समुद्र तल से 18600 फीट है, जिस वजह से वहां इस मौसम में बर्फ मिल जाती है। ये जगह उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर है।

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