द्रोपदी का डांडा हिमस्खलन: यहां से स्वर्ग गए थे पांडव

उत्तरकाशी

Uttarakhand

हे द्रौपदी! उनकी रक्षा करना। लोगों के दिल से यही निकल रहा है। द्रौपदी के डांडा से नौ की मौत की खबर आ चुकी है। इसमें उत्तराखंड की बेहद होनहार और साहसी बेटी सविता कंसवाल भी शामिल है। 14 रेस्क्यू कर लिए गए हैं, लेकिन 22 प्रशिक्षु  पर्वतारोही अभी भी लापता हैं। वे किन हालात में हैं, कुछ पता नहीं है। माना जा रहा है ये सभी किसी क्रेवास यानी की बर्फ की दरारों में फंसे हुए हो सकते हैं। उम्मीद यही है कि यह दरार बहुत गहरी न हो। सभी सुरक्षित हों। वे निकल जाएं। द्रौपदी उनकी रक्षा कर रही होंगी, ऐसा विश्वास है।

बताते चलें कि हिमालयी क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए निकला 46 पर्वतारोहियों का दल डोकराणी बामक ग्लेशियर क्षेत्र में हिमस्खलन की चपेट में आ गया था। वहां से बुधवार को 14 लोगों को हेलीकॉप्टर से मातली लाया गया। दल के बाकी 22 प्रशिक्षु अभी भी लापता हैं। इस दल के चार लोगों की मौत मंगलवार को ही हो चुकी है।

द्रौपदी का यह कैसा रौद्र रूप!

उत्तराखंड के डांडा-कांठ्यों में पांडव आज भी हैं! लोकविश्वास में, जागरों, पांडव नृत्यों में (देवगान) में नृत्य करते हुए। द्रौपदी भी नाचती हैं। पूजी जाती हैं। उन्हीं के नाम पर द्रौपदी का डांडा है। डांडा यानी चोटी। द्रौपदी की चोटी।

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द्रौपदी का डांडा को डीकेडी (Mt DKD) के नाम से भी जाना जाता है और ये जगह पृथ्वी का प्राकृतिक स्वर्ग कही जाती है।उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से सबसे निकट पड़ने वाला ग्लेशियर डोकरणी बामक भी डीकेडी क्षेत्र में ही है। यहां पर्यटकों के लिए ट्रैकिंग, कैंपिंग से लेकर पर्वतारोहण तक के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। यही कारण है कि निम ने भी इस क्षेत्र को बेसिक और एडवांस ट्रेनिंग के लिए चुना है। हर साल संस्थान के कई ग्रुप यहां ट्रेनिंग के लिए लाए जाते रहे हैं। उन्हें पर्वतारोहण के गुर सिखाए जाते हैं। सात बार एवरेस्ट फतह कर चुके लवराज धर्मसत्तू, जानी मानी पर्वतारोही शीतलराज भी द्रौपदी का डांडा में ट्रेनिंग ले चुकी हैं। डोकराणी बामक ग्लेशियर से पीछे अडवांस्ड बेसकैंप है। यहीं ठहरकर ग्रुप आगे बढ़ता है। NIM के इतिहास में इस जगह पर यह पहला इतना बड़ा हादसा है। यहां जा चुके पर्वतारोही कुदरत के इस मिजाज से हैरान हैं।

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बात करें इस जगह के पौराणिक महत्व की, तो इसका जिक्र महाभारत में भी है। कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव उत्तराखंड आ गए थे। वो द्रौपदी का डांडा नाम के पर्वत पर पहुंचे और यहीं से वो स्वर्ग गए। गंगोत्री मंदिर के पूर्व सचिव दीपक सेमवाल के अनुसार पांडवों के साथ स्वर्गारोहण कर रहीं द्रौपदी को स्वर्ग जाते समय थकान महसूस हुई। जिस पर पांडवों ने कुछ दिन यहाँ पर विश्राम किया था। इस जगह से पूरा हिमालय क्षेत्र दिखता है, ऐसे में इसका नाम ‘द्रौपदी का डांडा’ रख दिया गया। इसके अलावा यहां पर खेड़ा ताल स्थित है, जिसे नाग देवता का ताल कहा जाता है। हर साल सावन में इसकी विधि-विधान से पूजा होती है।

18 हजार फीट है ऊंचाई

आपको बता दें कि द्रौपदी का डांडा की ऊंचाई समुद्र तल से 18600 फीट है, जिस वजह से वहां इस मौसम में बर्फ मिल जाती है। ये जगह उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर है। ये जगह मुख्यालय से इतनी पास है, जिसके चलते यहां पर ट्रैकिंग और ट्रेनिंग दोनों के लिए अच्छी व्यवस्था मिल जाती है।

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