दशहरा : आचार, शौचाचार और सदाचार से रावण का विनाश निश्चित है

नवरात्रि और दशहरा यानि विजयादशमी एक-दूसरे गुंथित त्यौहार हैं। दोनों में सत्य की विजय की प्रधानता है। भगवान श्रीराम ने सत्य के मार्ग पर चलते हुए बुराई का शमन किया और धर्म की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। राम जी के विजय के रूप में मनाए जाने वाला यह उत्सव आज हम विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। रावण का विनाश भी दशहरा यानि विजयादशमी के दिन ही हुआ।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

आज शनिवार, 12 अक्टूबर को दशहरा है। त्रेतायुग में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर श्रीराम ने रावण का वध किया था। रावण को बुराइयों का प्रतीक माना जाता है। रावण बहुत शक्तिशाली, चतुर और अहंकारी था, इस वजह से ब्रह्मा जी से वरदान मांगते समय भी उसने चतुराई दिखाई थी। रावण की इसी चतुराई की वजह से भगवान विष्णु को राम के रूप में मानव जन्म लेना पड़ा था।

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परमात्मा ने मनुष्य को अपनी ही शक्ल देकर संसार में भेजा है, लेकिन हम इंसान भी कमाल के होते हैं। हमने फिर अपनी शक्ल परमात्मा को दे दी और एक घालमेल हो गया। इसी कारण देवस्थान पर स्थापित प्रतिमाएं अपना सच्चा उद्देश्य खो देती हैं। इसमें प्रतिमा का कोई दोष नहीं। हम अपने ढंग से प्रतिमा बनाते हैं और सबने अपने-अपने हिसाब से घोषणा कर रखी है कि मेरा भगवान सबसे अलग है।

यह संवाद सुनकर ईश्वर को बड़ी तकलीफ होती है कि कोई मुझे इस तरह बांट कैसे सकता है। देवी उपासना के नौ दिन यानी नवरात्र का समापन हुआ और आ गया दशहरा। इस दिन रावण का मरना हमारे लिए एक बहुत बड़ा संदेश है। राम ने केवल शस्त्रों से या सेना के सहयोग से रावण को नहीं मारा था। इसके लिए एक अनूठा प्रयोग किया था उन्होंने। देवी भागवत में आचार का वर्णन आया है।

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कहा गया है मनुष्य को उठते ही आचार, शौचाचार और सदाचार से अपनी दिनचर्या शुरू करना चाहिए। आचार को प्रमुख धर्म बताया गया है। ‘आचार: प्रथमो धर्म:।’ शौचाचार मतलब स्नान आदि शुद्धि और सदाचार यानी योग। यही प्रयोग राम ने किया था और रावण को मारा था। रावण दुर्गुणों का पुलिंदा है और अरूप रावण के रूप में आज भी हमारे भीतर जिंदा है, पर यदि हमने आचार, शौचाचार और सदाचार बचाया तो उसका विनाश निश्चित है।

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