दशहरा : आचार, शौचाचार और सदाचार से रावण का विनाश निश्चित है

पं. विजयशंकर मेहता

Uttarakhand

परमात्मा ने मनुष्य को अपनी ही शक्ल देकर संसार में भेजा है, लेकिन हम इंसान भी कमाल के होते हैं। हमने फिर अपनी शक्ल परमात्मा को दे दी और एक घालमेल हो गया। इसी कारण देवस्थान पर स्थापित प्रतिमाएं अपना सच्चा उद्देश्य खो देती हैं। इसमें प्रतिमा का कोई दोष नहीं। हम अपने ढंग से प्रतिमा बनाते हैं और सबने अपने-अपने हिसाब से घोषणा कर रखी है कि मेरा भगवान सबसे अलग है।

यह संवाद सुनकर ईश्वर को बड़ी तकलीफ होती है कि कोई मुझे इस तरह बांट कैसे सकता है। देवी उपासना के नौ दिन यानी नवरात्र का समापन हुआ और आ गया दशहरा। इस दिन रावण का मरना हमारे लिए एक बहुत बड़ा संदेश है। राम ने केवल शस्त्रों से या सेना के सहयोग से रावण को नहीं मारा था। इसके लिए एक अनूठा प्रयोग किया था उन्होंने। देवी भागवत में आचार का वर्णन आया है।

कहा गया है मनुष्य को उठते ही आचार, शौचाचार और सदाचार से अपनी दिनचर्या शुरू करना चाहिए। आचार को प्रमुख धर्म बताया गया है। ‘आचार: प्रथमो धर्म:।’ शौचाचार मतलब स्नान आदि शुद्धि और सदाचार यानी योग। यही प्रयोग राम ने किया था और रावण को मारा था। रावण दुर्गुणों का पुलिंदा है और अरूप रावण के रूप में आज भी हमारे भीतर जिंदा है, पर यदि हमने आचार, शौचाचार और सदाचार बचाया तो उसका विनाश निश्चित है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *