ब्रह्माण्ड में पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है, जहां पर जीवन संभव है। ईश्वर की सबसे बुद्धिमान रचना मनुष्य है। इसके बावजूद हम जिस तरह से लगातार पृथ्वी के लिए घातक बनते जा रहे हैं, वह निश्चित रूप से शुभ संकेत नहीं है। धरती ने इंसानों को जीवन जीने के सारे संसाधन दिए हैं, लेकिन मनुष्य आज के समय में प्रकृति का निर्दयतापूर्ण इस्तेमाल कर रहा है। आज 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस है। आइए! आज हम सब धरती माता का ऋण चुकाकर, अपना इंसान होने का फर्ज निभाएं।
विनोद चमोली
योग वशिष्ठ में भगवान श्रीराम को गुरु वशिष्ठ उनके द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं, ‘‘जो व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति को प्रकृति के साथ तालमेल कर लेता है, उसी का जीवन सफल होता है।’’ वहीं बचपन से ही हम किताबों में पढ़ते आये हैं कि हमारा जीवन और पर्यावरण दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। हमारे पूर्वजों ने भी तो शुरू से ही हमें यह समझाया था कि प्रकृति से तालमेल कर चलने वाला सुखी होता है। अफसोस है कि हमने यह पाठ किताबों में पढ़कर और बुजुर्गों से सीखने के बाद जीवन में नहीं उतारा। इसी का परिणाम है कि हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्यावरण का जमकर दोहन कर रहे हैं। लेकिन प्रकृति एक ही झटके में समझा देती है कि स्वार्थ की राह आत्मघाती होती है।
प्रकृति के बिना मानव का अस्तित्व नहीं
जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं-प्राणवायु, जल, भोजन-ये हमें सब प्रकृति से मिलती हैं। इनके बिना जीवन के बारे में कोई कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इससे साफ जाहिर होता है कि प्रकृति पहले और और हम सब बाद में हैं। प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्व ही संभव नहीं है। सूर्य की ऊर्जा से संचालित हमारा एक मात्र ग्रह इस ब्रह्माण्ड में सबसे अद्भुत है। लेकिन दुनिया की मानव प्रजाति की आवश्यकताएं, जीवन की आवश्यकताओं से बहुत बड़ी हो गई हैं। आज विश्व जिस महासंकट से जूझ रहा है, उसका मूल कारण मानव द्वारा प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ ही है। अपने स्वार्थ के लिए मानव ने हवा, जल को प्रदूषित किया वहीं पृथ्वी का दोहन इतना कर रहा है कि उसकी क्षमता भी कमजोर हो गई है।
क्यों मनाया जाता है पृथ्वी दिवस
महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रकृति में इतनी ताकत है कि वह मनुष्य की हर जरूरत पूरा कर सकती है, लेकिन लालच नहीं। यही कारण है कि पृथ्वी के संरक्षण को लेकर 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी पर निवास करने वाले तमाम जीव-जंतु और पेड़-पौधों को बचाने के साथ ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य को लेकर पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। 22 अप्रैल 1970 को अमेरिका के लोग बड़ी संख्या में पर्यावरण की रक्षा के लिए पहली बार सड़कों पर उतरे थे। जिस पर अमेरिकी जनता की इस पहल को आधुनिक पर्यावरण आंदोलन का प्रारंभ माना जाता है। इस शुरूआत के साथ ही पूरी दुनिया में यह अर्थ डे के रूप में मनाया जाने लगा।
आज संकट में है धरती माता
परमार्थ ही जीवन का आधार है। पर्यावरण पर बढ़ता खतरा पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन आज समस्त प्राणी जगत के अस्तित्व के लिए बड़ी चुनौती है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानव स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर हो रहा है। जलवायु परिवर्तन से सूखे और बाढ़ के हालात बनते हैं, जिनका सीधा प्रभाव किसानों पर पड़ता है। ऐसे में यदि मानव ने अगर अब भी जल, हवा, जंगल से खिलवाड़ करना जारी रखा और पृथ्वी का दोहन अपने स्वार्थ के लिए करता रहा तो फिर आने वाले कल अंधकारमय ही होगा और हमारी भावी पीढ़ियां हमें इसके लिए कभी माफ नहीं करेंगी।
आइए हम साथ मिलकर धरती मां की उम्र बढ़ाने का संकल्प लें
वेदों में पृथ्वी को पवित्र और मां का रूप माना गया है। ऐसे में हम सभी का दायित्व है कि धरती माता को बचाने की अपने स्तर पर पहल करें। लेकिन इसके लिए केवल किसी एक दिन को माध्यम बनाया जाए, क्या यह उचित है? हमें हर दिन पृथ्वी दिवस मानकर उसके बचाव के लिए कुछ न कुछ उपाय करते रहना चाहिए। तो आइए, इस पृथ्वी दिवस पर संकल्प लें कि इस धरा की खूबसूरती को न सिर्फ बनाकर रखेंगे बल्कि इसे और ज्यादा प्राकृतिक बनाने की ओर पहल करेंगे।
पृथ्वी दिवस 2022 का थीम ‘‘इन्वेस्ट इन आवर अर्थ’’
इस साल वर्ल्ड अर्थ डे की थीम है, ‘इन्वेस्ट इन आवर अर्थ’। मतलब ‘हमारी पृथ्वी में निवेश करें’। इसमें मुख्य बिंदू (की प्वाइंट) है साहसिक तरीके से काम करना, व्यापक रूप से इनोवेशन करना और न्यायसंगत तरीके से लागू करना है। इससे पहले साल 2021 में वर्ल्ड अर्थ डे की थीम ‘रिस्टोर अवर अर्थ’ और साल 2020 की थीम ‘क्लाइमेट एक्शन’ थी।