सोमवार विशेष : अमृतपान के लिए सभी उत्सुक, विष पान के लिए शिव ही हैं

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हिमशिखर खबर

कहते हैं कण-कण में हैं शिव! कंकर-कंकर में हैं भगवान शंकर। वेदों ने सगुण और निर्गुण दोनों प्रकार का कहा है उनको। भगवान सदाशिव के स्वरूप को महिमा के शब्दों में व्यक्त करना असंभव ही है। सदाशिव देवों के देव हैं इसलिए वे महादेव कहलाते हैं।

शिव का अर्थ कल्याण है। शं आनंद का बोध है, कर करने वाले के लिए प्रयुक्त होता है। अर्थात् जो प्राणी को आनंद देने वाला है अथवा उसका आनंद स्वरूप है, वही शंकर है। शिव भोग और मोक्ष दोनों के ही प्रदाता हैं। कल्याणकारी शिव प्रलय एवं संहार के भी देवता माने जाते हैं। सृष्टि और प्रलय, दो अवश्यम्भावी तत्व है।

भगवान शिव को जाने बिना उनकी भक्ति के कोई मायने नहीं हैं। शिव को जानने के लिए प्रकृति को भी समझना आवश्यक है। शिव शांत हैं और रुद्र भी। उनकी जटाओं में गंगा पावनता की ओर संकेत करती है। उनके सिर पर स्थित चंद्रमा अमृत का द्योतक है। गले में लिपटा सर्प काल का प्रतीक है। इस सर्प अर्थात काल को वश में करने सही शिव ‘मृत्युंजय’ कहलाएं। त्रिपुण्ड, योग की तीन नाड़ियों-इड़ा, पिंगला और सुषुम्नाकी द्योतक हैं तो ललाट मध्य स्थित तीसरा नेत्र आज्ञा चक्र का द्योतक होने के साथ ही भविष्य दर्शन का भी प्रतीक है।

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महादेव के हाथों में स्थित त्रिशूल तीन प्रकार के कष्टों-दैहिक, देविक और भौतिक के विनाश का सूचक है। उनके वाहन नंदी धर्म के प्रतीक हैं, जिस पर आरूढ़ रहने के कारण ही वे धर्मेश्वर कहलाते हैं। हाथों में डमरू उस ब्रह्म निनाद का सूचक है जिससे समस्त वांगमय निकला है। कमण्डल, संपूर्ण जगत के एकीकृत रूप का द्योतक है। जीवन की इतिश्री का नाम ही श्मशान है। यहां न जन्म है और न मृत्यु। भस्म का अर्थ जीवन के सत्य को समझ लेना है। इसीलिए शिव अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं।अमृतपान के लिए सभी उत्सुक होते हैं, किंतु विष पान के लिए शिव ही हैं।

समुद्रमंथन से निकलने वाले कालकूट विष का भगवान शंकर ने पान किया और अमृत देवताओं को दिया। श्रेष्ठ व्यक्तित्व और समाज एवं कुटुंब के स्वामी का यही कर्तव्य है। उत्तम वस्तु समाज के अन्यान्य लोगों को देनी चाहिए और अपने लिए परिश्रम, त्याग तथा तरह-तरह की कठिनाईयों को ही रखना चाहिए।

शिवजी का कुटुम्ब भी बड़ा विचित्र है। कुबेर के अधिपति तथा अन्नपूर्णा का भण्डार सदा भरा, पर भोले बाबा सदा साधारण सा जीवन। कार्तिकेय सदा युद्ध के लिए उद्यत, पर गणपति स्वभाव से शांतिप्रिय। फिर कार्तिकेय का वाहन मयूर, गणपति का मूषक, पार्वती का सिंह और स्वयं नंदी और उस पर आभूषणों के सर्पों के सभी एक-दूसरे के शत्रु, लेकिन भोलेनाथ की छत्रछाया में सभी सुख शांति से रहते हैं।

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मनुष्य भी अपने जीवन में अनेकानेक बंधनों से जकड़ा हुआ है। सफलता-असफलता, दुःख, रोग और गरीबी के जहर उसे मिलते रहते हैं। लेकिन सामान्य मनुष्य इन स्थितियों से घबरा जाता है और परेशान हो जाता है। जबकि भगवान शिव यह दर्शाते हैं कि अरे गृहस्थ जीवन में तो यह परेशानियां आती ही रहेंगी लेकिन जो ज्ञानी पुरुष हैं, वे इनसे विचलित नहीं होते और जीवन में आगे बढ़ते रहते हैं।

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