पंडित हर्षमणि बहुगुणा
यह कहानी आत्म बोध के लिए कुछ शिक्षा प्रदान कर सकती है। प्राचीन काल में सिंह नगर में एक राजकुमार रहता था। न जाने कैसे उसके पेट में एक सर्प रहता था, इस कारण जो भी भोजन राजकुमार करता उसे वह सर्प खा लेता था और दिन प्रतिदिन बलवान हो रहा था जबकि राजकुमार दिन प्रतिदिन कमजोर।
किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर राजकुमार कमजोर क्यों हो रहा है। एक दिन राजकुमार सो रखा था उसका मुंह खुला था इससे उस सर्प को मौका मिला और वह अपना फन बाहर निकाल कर खूब गहरी व लम्बी सांस लेने लगा । जब वह गहरी सांस ले रहा था तो उसी समय उसने देखा कि सामने दीवार पर एक सर्प बैठा है, दोनों ने एक दूसरे को देखा व ईर्ष्या से एक दूसरे को जो मन में आया कहने लगे।
राजकुमार की पत्नी यह नजारा देखने के लिए चुपचाप खड़ी रही। दीवाल पर बैठे सर्प ने राजकुमार के पेट में बैठे सर्प को धिक्कारते हुए कहा कि अब समझा कि राजकुमार दिन प्रतिदिन कमजोर क्यों होता जा रहा है? तू इस राजकुमार के पेट से निकल क्यों नहीं जाता है? बाहर निकल कर मेहनत से खाया कर, बिना परिश्रम से खा-खा कर मोटा होता जा रहा है! किसी दिन यदि किसी ने राजकुमार को कांजी काढ़ा बनाकर पिला दिया तो तेरा उसी दिन काम तमाम हो जाएगा। अतः मेरी सलाह मान ले व इसके पेट से निकल कर भाग जा।
इस तरह अपनी मृत्यु का रहस्य सुन कर वह चुप कैसे रह सकता था और बोला— अरे तू बहुत ईर्ष्यालु है, मुझ से जलता है अपनी तरफ देख न जाने कब से राजकुमार के धन पर कुण्डली मारे बैठा है, अरे अगर किसी ने गरम गरम तेल तेरे सिर पर डाल दिया तो तू कुछ ही क्षणों में मर जाएगा। अपनी अपनी बात कह कर दोनों अपनी अपनी जगह चले गए।
राजकुमार की पत्नी ने इस रहस्य को सुन कर उसी दिन कांजी बनवाई और राजकुमार को पिलाई और अपने पति को स्वस्थ्य कर लिया। दूसरे दिन तेल उबाल कर दिवाल के छेद में डलवा दिया। इस प्रकार दोनों सर्पों के समाप्त होने होने से सुखपूर्वक रहने लगे। पति स्वस्थ हो गया व दीवार में रखा धन भी मिल गया।
तभी तो कहा गया है कि जब भीतरी घात होता है तो उसका लाभ बाहर के लोगों को मिलता है। यही हाल आज के समय हमें भी देखने काे मिल रहा है । समझदार को इशारा ही काफी है।