हिमशिखर खबर ब्यूरो
आज शुक्रवार को ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इस दिन बिना पानी पिए उपवास करने का विधान ग्रंथों में है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी की पूजा विशेष रूप से किए जाने की मान्यता है।
तीर्थ स्नान और सूर्य के सामने व्रत का संकल्प
महाभारत, स्कंद और पद्म पुराण के मुताबिक निर्जला एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ जल से नहाने का विधान है। इसके के बाद उगते हुए सूरज को अर्घ्य देकर सूर्य के सामने पूरे दिन उपवास रखने का संकल्प लिया जाता है। फिर भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं। इसके बाद तुलसी और पीपल की पूजा के बाद उनमें जल चढ़ाते हैं। भगवान गणेश की पूजा के साथ भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का अभिषेक किया जाता है। भगवान को पीले वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। इस दिन तामसिक भोजन से बचना चाहिए। नशा नहीं करना चाहिए। घर-परिवार में शांति रखें। गुस्से से बचें।
उपवास न कर सकें तो क्या करें
कुछ लोग शारीरिक तकलीफ की वजह से पूरे दिन बिना पानी पिए नहीं रह पाते हैं। उनके लिए ग्रंथों में बताया गया है कि ऐसा कठिन उपवास न रख पाएं तो पानी पीकर व्रत रख सकते हैं। लेकिन उसमें भी अन्न नहीं खाते, फल खा सकते हैं। इतना भी न हो सके तो भगवान विष्णु-लक्ष्मी के साथ पीपल और तुलसी की पूजा करने से भी व्रत-उपवास रखने जितना पुण्य मिलता है।
क्या-क्या करें एकादशी पर
एकादशी की सुबह पीपल और तुलसी को जल चढ़ाएं। पीपल की परिक्रमा करें। शाम को तुलसी के पास घी का दीपक लगाएं और तुलसी की परिक्रमा करें। भगवान विष्णु को खीर, पीले फल या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। इस दिन दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर उससे भगवान विष्णु का अभिषेक करना चाहिए। किसी मंदिर में जाकर गेहूं या चावल का दान करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र और तुलसी की माला चढ़ाएं।
व्रत के साथ ही स्नान-दान की भी परंपरा
निर्जला एकादशी पर पूरे दिन उपवास रखा जाता है। लेकिन उपवास न रख पाएं तो व्रत कर सकते हैं। इस दिन पवित्र नदियों के जल से स्नान किया जाता है। जरुरतमंद लोगों को खाना और जलदान करने की भी परंपरा है। वहीं, भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा करने से सुख और समृद्धि बढ़ती है। जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस एकादशी पर पानी से भरा मटका दान करने से कई गुना पुण्य मिलता है।