कुल देवता का तात्पर्य ऐसे देवता से है, जिसकी कृपा से कुल में अभिवृद्धि हुई है। कुलदेवता की परिवार को सदैव एक अभय छत्र प्राप्त होता है। जिस प्रकार मां बाप स्वतः ही अपने पुत्र-पुत्रियों के कल्याण के प्रति चिन्तित रहते हैं, ठीक उसी प्रकार कुलदेवता या कुलदेवी अपने कुल के सभी मनुष्यों पर कृपा करने को तत्पर रहते हैं। अफसोस! आज की भौतिक चकाचौंध में कुल देवता को भुलाया जाने लगा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई लोग कुलदेवता-कुलदेवी का नाम तक नहीं जानते, जिससे वे अपने कुल की जड़ों से कट गए हैं।
परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद
व्यक्ति की पहचान सबसे पहले उसके कुल से होती है। प्रत्येक व्यक्ति का जिस प्रकार नाम होता है, गोत्र होता है, उसी प्रकार कुल भी होता है। ‘कुल’ अर्थात् खानदान या उसकी वंश परम्परा। जिस वंश से वह सम्बन्धित होता है, वह वंश तो हजारों-लाखों सालों से चला आ रहा है, लेकिन आज सामान्य व्यक्ति अपने कुल की तीन-चार पीढ़ियों से अधिक नाम नहीं जानता। यह कैसी विडम्बना? यदि किसी व्यक्ति से उसके परदादा के भाइयों के नाम पूछे जाएं, तो वह बता नहीं पाता है।
आज की तीव्र जीवन शैली में हम अपनी मूल संस्कृति से उतना अधिक सम्पर्कित नहीं रह सके हैं। आज के दौर में परिवारों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाने से, संस्कारों का क्षय होने या दूसरे कई अन्य कारणों के कारण कुल खानदान के कुलीदेवी और देवता को भूलकर अपने वंश के इतिहास को भूल गए हैं। खासकर यह प्रवृत्ति शहरों में देखने को ज्यादा मिलती है। ऐसा भी होता है कि कुलदेवी-कुलदेवता की पूजा छोड़ने के बाद कुलदेवता का सुरक्षा चक्र उस वंश से हट जाता है।
कुल देवी या कुल देवता वंश के रक्षक देवी-देवता होते हैं। इनकी गणना हमारे घर के बुजुर्ग सदस्यों की तरह होती है। अतः प्रत्येक शुभ कार्य में इनको याद करना जरूरी होता है। कुल देवता का अलग से एक मन्दिर होता है। कुलदेवता कई प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों में भी अपने कुल की रक्षा करते हैं।
वाल्मीकि रामायण में देखने को मिलता है कि विश्वामित्र के आश्रम में विद्या अर्जित कर पुनः अयोध्या लौटने पर भगवान श्रीराम ने अपने कुल के सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा-अर्चना की। राजमहल के अंदर ही देवी-देवताओं की जाग्रत मूर्तियां थीं।
जिस प्रकार मां-बाप स्वतः अपने पुत्र-पुत्रियों के कल्याण के प्रति चिन्तित रहते हैं, ठीक उसी प्रकार कुलदेवता या कुलदेवी अपने कुल के सभी मनुष्यों पर कृपा करने को तत्पर रहते हैं। मूल रूप से कुलदेवता अपनी कृपा कुल पर बरसाने को तैयार रहते हैं, लेकिन देवयोनि में होने के कारण बिना मांगे स्वतः देना उनके लिए उचित नहीं होता है। परन्तु यह देने की क्रिया तभी होती है, जब साधक मांग करता है। इसलिए प्रार्थना, पूजा-पाठ आदि का विधान है।