‘सु’ और ‘अस्तिका’ से मिलकर बना है जिसमें सु का अर्थ है शुभ व अस्तिका से तात्पर्य है होना। अतः स्वास्तिक का अर्थ हुआ शुभ होना या शुभ हो। इसीलिए हिंदू धर्म में हर शुभ व मंगल कार्य में स्वास्तिक को अंकित जरुर किया जाता है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
पंडित उदय शंकर भट्ट
“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा।।”
हम परम्परा अनुसार भी और अपने आपको चूँकि बचपन से इसी तरह की विधियां दैनिक जीवन में देखी हैं, अतः हम भी उसी पे चलने के आदि हैं, किन्तु शास्त्र सम्मत भी है कि भी शुभ कार्य के पहले भगवान गणपति का स्मरण किया जाता है। भगवान गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले, कार्यों में सिद्धि देने वाले, तथा जीवन में सभी प्रकार से पूर्णता देने वाले हैं।
“कलौ चंडी विनायको” के द्वारा कहा गया है कि कलियुग में दुर्गा और गणेश ही पूर्ण सफलता देने वाले हैं…
तुलसीदासजी ने राम चरित मानस में कहा है कि—-
“जो सुमिरत सिद्धि होय, गण नायक करिवर वदन।
करउ अनुग्रह सोई, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन।।”
भारत के ही नहीं वरन विश्व के सभी साधक अपने कार्यों और समस्त साधना में सिद्धि हेतु गणपति की पूजा-साधना करते ही हैं…..
पूजा में सबसे पहले गणेश जी का प्रतीक चिह्न स्वास्तिक बनाया जाता है। गणेशजी प्रथम पूज्य देव हैं, इस कारण पूजन की शुरुआत में स्वास्तिक बनाने की परंपरा है।
स्वास्तिक बनाकर पूजा करने से सभी धर्म-कर्म सफल होते हैं और जिन मनोकामनाओं के लिए पूजा की जाती है, वे इच्छाएं भगवान पूरी करते हैं। स्वास्तिक का काफी अधिक महत्व बताया गया है, इसे सही तरीके से बनाने पर ही पूजा पूरी होती है।
स्वास्तिक सीधा और सुंदर बनाना चाहिए
स्वास्तिक कभी भी आड़ा-टेढ़ा नहीं बनाना चाहिए। ये चिह्न एकदम सीधा और सुंदर बनाना चाहिए। ध्यान रखें घर में कभी भी उल्टा स्वास्तिक नहीं बनाना चाहिए। घर में जहां स्वास्तिक बनाना है, वह स्थान एकदम साफ और पवित्र होना चाहिए। जहां स्वास्तिक बनाएं, वहां बिल्कुल भी गंदगी नहीं होनी चाहिए।
स्वास्तिक में गणेशजी का वास
शास्त्रों के अनुसार, स्वास्तिक परब्रह्म, विघ्रहर्ता व मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश का भी साकार रूप है। स्वास्तिक का बायां हिस्सा ‘गं’ बीजमंत्र होता है, जो भगवान गणेशजी का स्थान माना जाता है। इसमें जो चार बिंदियां होती है, उनमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानी कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है। वेद भी स्वास्तिक को गणपति का स्वरूप मानते हैं। कहते हैं कि जिस भी स्थान पर स्वास्तिक बनाया जाता है, वहां शुभ, मंगल और कल्याण होता है यानी गणेशजी स्वयं वास करते हैं।
स्वास्तिक सकारात्मक ऊर्जा करता है आकर्षित
स्वास्तिक धनात्मक यानी सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। दरवाजे पर स्वस्तिक बनाने से घर में नकारात्मकता प्रवेश नहीं कर पाती है और दैवीय शक्तियां आकर्षित होती हैं। दरवाजे पर स्वस्तिक बनाने से वास्तुदोष भी दूर हो सकते हैं।
हल्दी का स्वास्तिक
वैवाहिक जीवन की परेशानियों को दूर करने के लिए पूजा करते समय हल्दी वा कुमकुम से स्वास्तिक बनाना चाहिए।