त्योहार : गंगोत्री धाम में सादगी से मनाया गया गंगा सप्तमी, हवन-पूजन कर की गई विश्व मंगल की कामना

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क
गंगोत्री

गंगोत्री धाम में गंगा सप्तमी का त्योहार सादगी से मनाया गया। इस दौरान तीर्थ पुरोहितों ने गंगा सहस्रनाम पाठ, गंगा लहरी पाठ, गंगा स्तोत्र पाठ और हवन कर विश्व कल्याण और कोरोना से मुक्ति के लिए कामना की।

बुधवार को ब्रह्म मुहूर्त में गंगोत्री मंदिर के गर्भ गृह में वैदिक ऋचाओं के साथ मां गंगा का पूजन और अभिषेक किया गया। इसके बाद मंदिर परिसर में हवन संपन्न हुआ। बताते चलें कि सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मां गगा स्वर्ग लोक से चलकर भगवान शिव की जटाओं में अवतरित हुई। शिव की जटा में अवतरित होने के कारण इस दिन को गंगा सप्तमी कहा जाता है। इस मौके पर पांच मंदिर समिति गंगोत्री के सचिव दीपक सेमवाल ने कहा कि गंगा के स्मरण मात्र से ही मानव का कल्याण हो जाता है। कहा कि वर्तमान में कोरोना महामारी और विश्व मंगल कामना के लिए गंगा सप्तमी पर सभी पुरोहितों ने हवन-पूजन किया। वहीं मंगलवार देर रात्रि से गंगोत्री क्षेत्र में बारिश होने के कारण गोमुख और उंची पहाड़ियों में हिमपात हो रहा है। जिस कारण गंगोत्री क्षेत्र में ठंडक बढ़ गई है। इस मौके पर श्रीपांच मंदिर समिति गंगोत्री के अध्यक्ष  सुरेश सेमवाल, अरूण सेमवाल, हरीश सेमवाल, प्रेम बल्लभ सेमवाल, राजेश सेमवाल, राकेश सेमवाल, अमरीश सेमवाल, प्रवीण सेमवाल, रवि सेमवाल, संजीव सेमवाल, मुकेश सेमवाल, सुनील सेमवाल, गगन सेमवाल, अनूप सेमवाल, मयंक सेमवाल आदि मौजूद रहे।

मां गंगा की सभ्यता और संस्कृति को जीवंत बनाने में है अहम भूमिका
भारत जैसे विशाल देश में गंगा नदी को लोक कल्याणकारी माना गया है। हमारी सभ्यता व संस्कृति को जीवंत बनाए रखने में अमृत तुल्य गंगा नदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हमारे देश में नदियों में पवित्रता व उनके महात्मय की दृष्टि से देखा जाए तो उनमें गंगा नदी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इस नदी में समाहित ऐसे कई गुण हैं जो इसे न सिर्फ भारत की बल्कि समस्त संसार की श्रेष्ठतम नदी बनाती है। आपको बता दें विश्व में अनेक बड़ी नदियां हैं परंतु वैदिक ऋषि जिन सात नदियों का स्मरण स्नान करने के समय करते थे, उसमें सबसे पहले मां गंगा का ही नाम आता है।

गंगा को मिला है माता का दर्जा
गोस्वामी तुलसीदास ने भी गंगा नदी के बारे में कहा है कि समस्त आनंद एवं मंगल का विधान करने वाली, सुख समृद्धि प्रदान करने वाली व इह लोक एवं परलोक की विपत्तियों का सर्वनाश करने वाली गंगा नदी के समान इस संसार में भला दूसरा कौन हो सकता है। सनातन धर्म में तो गंगा नदी को माता कहा गया है। ऋषि-मुनियों ने गंगा नदी की अलौकिकता का वर्णन किया है। न केवल धार्मिक मान्यताएं बल्कि वैज्ञानिक भी मान चुके हैं कि गंगा जी के जल में हिमालय की औषधियों का प्रभाव है। इसके चलते ही गंगा जल में कभी कीटाणु नहीं पड़ते।

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