गंगोत्री में 22 साल से आंसू बहा रहा ‘गंगापुत्र’

हाड़ कंपा देने वाली सर्दी और ग्लेशियर के खतरों की बीच गंगोत्री में एक साधक निरंतर 22 वर्ष से भागीरथी तट के किनारे में अनूठी साधना कर रहा है। रोज सुबह-सायं रो-रोकर अपनी अश्रुधारा के अंश को गंगा सागर तक पहुंचाने की चेष्टा करने वाला यह साधक है स्वामी वेदांतानंद। वह मां गंगा के साक्षात दर्शन के लिए यह तपस्या कर रहा है। वह गंगोत्री से कुछ दूरी पर बिना किसी सहायक व चेले के एक गुफा में अकेले रहते हैं। इतना ही नहीं यहां वह किसी को फटकने भी नहीं देते हैं ताकि उनकी साधना में विघ्न न पहुंचे।

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

गंगोत्री: गंगोत्री से एक किलोमीटर दूर भागीरथी के तट पर एक साधक 22 सालों से आंसू बहा रहा है। आंखों से निकली बूंदें जल में विलीन हो रही हैं और भाव विभोर साधक मां गंगा को पुकार रहा है। चारों ओर पसरे वीराने में सहज ही आध्‍यात्‍म का आभास होने लगता है। गंगा की साधना में रत योगी का यह हर रोज का नियम है। रोजाना सुबह और शाम को यह क्रिया चलती है।

गंगा का मायका सदियों से साधु संतों की भूमि रहा है। आज भी यहां दुनिया जहां से दूर अपने अराध्‍य की स्‍तुति में लीन साधकों को देखा जा सकता है। गंगोत्री क्षेत्र में कई योगी बारह महीनों कठोर तप कर रहे हैं। हर किसी का अपना अंदाज। सर्दी हो या गर्मी अथवा बरसात, मौसम से उन्‍हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इन्‍हीं में से एक हैं स्‍वामी वेदांतानंद। वह पिछले 22 साल से गंगा को अपने आंसू अर्पित कर रहे हैं। जर्जर काया पर लंबी दाढ़ी उनके जुनून की दास्‍तां बताने के लिए काफी है। सर्दियों में जब गंगोत्री धाम सहित जब यह पूरा उच्‍च हिमालयी पांच से छह फीट बर्फ से ढक जाता है। तब भी वे अपनी अनूठी साधना की अलख जगाए रखते हैं। इसके लिए वे रोजाना गंगा तट पर पहुँचते ही हैं।

कभी बसंत कुमार के नाम से पहचाने जाने वाले स्वामी वेदांतानंद कुरेदे जाने पर जब वह पिछली जिंदगी की याद करते हुए बताते हैं कि अध्‍यात्‍म की ओर झुकाव होने के कारण विवाह नहीं किया और कोलकता में 1 मिशन से जुड़ गया। लेकिन कुछ समय में वहां से मोह भंग हो गया। अन्‍य धर्मगुरूओं की भी शरण ली। फिर भी मन को कहीं सुकून नहीं मिला। 22 साल पहले अचानक मां गंगा की शरण में आने की प्रेरणा मिली और सीधे गंगोत्री धाम चला आ गए। तब से भूलवश भी मां से अलग होने का विचार मन में नहीं आया। अब तो मां के आंचल में ही उनका संसार है।

स्वामी वेदांतानंद रोज सुबह-सायं रो-रोकर अपनी अश्रुधारा के अंश को गंगा सागर तक पहुंचाने की चेष्टा कर रहे हैं। वह भागीरथी तट पर पिछले 22 साल से लगातार मां गंगा के साक्षात दर्शन के लिए तपस्या कर रहे हैं। वह गंगोत्री से कुछ दूरी पर बिना किसी सहायक व चेले के एक गुफा में अकेले रहते हैं। इतना ही नहीं यहां वह किसी को फटकने भी नहीं देते हैं ताकि उनकी साधना में विघ्न न पहुंचे।

धर्म को सत्‍य की खोज बताते हुए वे कहते हैं कि जीवन की छोटी बड़ी बातों में मनुष्‍य को सत्‍य साफ दिखाई देता है। लेकिन फिर भी वह उसे आत्‍मसात नहीं कर सकता। अगर ऐसा करेगा तो अपनी दुनिया से अलग थलग और अकेला पड़ जाएगा, यह एक बड़ा दुर्भाग्‍य है।

One thought on “गंगोत्री में 22 साल से आंसू बहा रहा ‘गंगापुत्र’

  1. Subhodayam,

    Living on the information highway, bombarded with all kinds of trivia, we have forgotten the essence of speech and communication.

    A situation wherein, Self-Realization and actualization replaced by blind belief, fear, manipulation and inappropriateness.

    To communicate properly, one needs the following four attitudes.. satyam, rutam, priyam and hitam.

    1. satyam vadam: absolute integrity… speak only what is understood… You speak what you are.

    2. rutam vadam: unopinionated, unbiased, speak only what you have concluded after thorough investigation.

    3. priyam vadam: how and what to say, timely and appropriately.

    4. hītam vadam: resulting in learning and curiosity. Non judgemental.

    You can make or break… depending on your approach, understanding and attitude. Build. Don’t break.
    Be a Responsible Citizen RC dear friend
    God bless us all.
    🕉️Om Shiva Namoah 🔱🕉️ Shanti Namah 🙏

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