हिमशिखर धर्म डेस्क
‘गयागमन मात्रेण पितृणामऋणं भवेत्।’
अर्थात्–’गयातीर्थ जाने मात्र से ही व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है।’
‘गय’ असुर के नाम पर पड़ा गयातीर्थ का नाम
पूर्वकाल में गय नामक असुर ने दारुण तपस्या की, जिससे डरकर सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से उसके वध की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा–’आप लोगों के कल्याण के लिए इसका महादेह गिराया जाएगा।’ एक बार गयासुर शिवपूजन के लिए क्षीरसमुद्र से कमल लेकर आ रहा था, तो भगवान विष्णु की माया से मोहित होकर कीकट देश में शयन करने लगा।
उसी स्थिति में भगवान विष्णु की गदा से वह असुर मारा गया। भगवान विष्णु ने कहा कि गयासुर का देह पुण्यक्षेत्र के रूप में होगा। उस गयासुर के नाम पर ही ‘गयातीर्थ’ नाम प्रसिद्ध हुआ। गयासुर की पवित्र देह में ब्रह्मा, जनार्दन, भगवान शिव व प्रपितामह स्थित हैं। यहां पर भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए ‘गदाधर’ रूप में स्थित हैं।
गयासुर की पवित्र देह ही बन गयी गयातीर्थ
एक अन्य कथा के अनुसार गय नामक असुर ने उत्कट तप से भगवान विष्णु से यह वरदान प्राप्त किया कि जो भी उसको स्पर्श करेगा, वह पवित्र होकर विष्णुलोक को प्राप्त होगा। इस वरदान से यमलोक सूना हो गया और विष्णुलोक में अधर्मी जाने लगे। यमलोक की यह दशा देखकर यमराज ने त्रिदेवों से विनती की। तब ब्रह्माजी ने गयासुर से कहा कि तुम्हारा शरीर बहुत पवित्र है; अत: सभी देवता चाहते हैं कि तुम्हारी पीठ पर हवन-पूजन हो।
यह सुनकर गयासुर बहुत प्रसन्न हुआ। विष्णुजी सहित सभी देव उसकी पीठ पर स्थित हो गए। जैसे ही गयासुर की पीठ पर हवन शुरु हुआ उसका सिर धड़ से अलग हो गया और शरीर हिलने लगा। तब देवताओं ने एक शिला उसके शरीर पर रख दी। भगवान विष्णु स्वयं उस शिला में प्रवेश कर गए। सभी देवताओं को अपनी पीठ पर स्थित देखकर गयासुर ने भगवान विष्णु से कहा कि–
’आप मुझे पत्थर की शिला बनाकर इस स्थान पर स्थिर कर दें और सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इस शिला पर विराजमान रहें। यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थ बन जाए।’
विष्णु ने वरदान देते हुए कहा–’गयासुर का देह मोक्षस्थली के रूप में होगा। यहां जो व्यक्ति भक्ति, यज्ञ, श्राद्ध, पिण्डदान व स्नान आदि करेगा, उसे स्वर्ग व ब्रह्मलोक की प्राप्ति होगी।’ इस तरह गयासुर के बलिदान से पांचकोश का गयाक्षेत्र मोक्षतीर्थ बन गया।
ब्रह्माजी ने पांच कोश में फैले उस गयातीर्थ का दान ब्राह्मणों को कर दिया। सभी देवताओं ने गयासुर को मरने बाद उसके शरीर में रहने का वरदान दिया था इसलिए गयाक्षेत्र में विभिन्न देवताओं के मन्दिर बने हैं–रामतीर्थ, अक्षयवट, गयाशीर्ष, क्रौंचपदतीर्थ, ब्रह्मेश्वर आदि। गयातीर्थ में दिन और रात प्रत्येक समय श्राद्ध किया जा सकता है।
भगवान विष्णु स्थित हैं गयातीर्थ में पितृदेवता के रूप में
आदिकाल से ही यहां पर आदिदेव भगवान गदाधर विष्णु पितृदेवता के रूप में शिलारूप में स्थित हैं। जिस प्रकार पृथ्वी पर स्थित सभी तीर्थों में गया श्रेष्ठ है उसी प्रकार शिला के रूप में विराजमान भगवान गदाधर श्रेष्ठ हैं। यहां पर ब्रह्मा आदि देवों ने भगवान गदाधर की पूजा की थी अत: जो मनुष्य भगवान गदाधर की पूजा करता है, उन्हें गंध, पुष्प, सुन्दर पुष्पमालाएं, धूप, नैवेद्य, वस्त्र, मुकुट, चामर, घण्टा, दर्पण, पिण्ड, अन्न आदि प्रदान करता है, वह धन-धान्य, आयु, आरोग्य, पुत्र-पौत्रादि, सम्पत्ति, श्रेय, विद्या और सम्पूर्ण मनोरथों को प्राप्त करता है।
भगवान गदाधर की पूजा से राज्य चाहने वाला राज्य और शान्ति चाहने वाला शान्ति को प्राप्त कर लेता है। गयातीर्थ में स्नान व भगवान गदाधर का दर्शन करने से मनुष्य की इक्कीस पीढ़ियां ब्रह्मलोक को प्राप्त करती हैं और वह अपने तीनों ऋणों (देव, गुरु व पितृऋण) से मुक्त हो जाता है
क्यों चाहता है हर प्राणी गया में श्राद्ध और पिण्डदान?
गया में कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहां पर तीर्थ न हो। पांचकोस के गयातीर्थ में जहां-कहीं पर भी पिण्डदान करने वाला मनुष्य अक्षयफल प्राप्त करके अपने पितरों को ब्रह्मलोक प्रदान करता है।
पंचकोशं गयाक्षेत्रं क्रोशमेकं गयाशिर:।
तत्र पिण्डप्रदानेन तृप्तिर्भवति शाश्वती।। (गरुड़पुराण)
▪️ ‘गयासिर’ जिसे ‘फल्गुतीर्थ’ भी कहते हैं, यहां पिण्डदान करने से पितरों को शाश्वत तृप्ति व परमगति प्राप्त होती है। पृथ्वी पर जितने भी तीर्थ, समुद्र और सरोवर हैं, वे सभी प्रतिदिन एक बार फल्गुतीर्थ आते हैं
▪️फल्गुनदी के किनारे विष्णुपाद मन्दिर में एक शिला पर भगवान विष्णु के चरण हैं जो गयासुर के हिलते हुए शरीर को स्थिर करने के लिए भगवान विष्णु ने गयासुर की छाती पर रखे थे। ये ‘धर्मशिला’ के नाम से जाने जाते हैं।
मंदिर परिसर में एक बरगद का वृक्ष है जिसे ‘अक्षयवट’ कहा जाता है, इस वृक्ष के नीचे मृतकों के अंतिम संस्कार की रस्में की जाती हैं। अक्षयवटतीर्थ में पितरों के लिए जो कुछ भी किया जाता है, वह अक्षय हो जाता है।
▪️प्रेतशिलातीर्थ–जिन बन्धु-बांधवों को प्रेतयोनि प्राप्त हो गई है, उनका यहां श्राद्ध करने से पितृगण प्रेतभाव से मुक्त हो जाते हैं।
▪️मकर-संक्रान्ति, चन्द्रग्रहण व सूर्यग्रहण के समय गयातीर्थ में जाकर पिण्डदान करने का दुर्लभ फल मिलता है। गयातीर्थ में श्राद्ध करने से मनुष्य के पंचमहापापों का नाश हो जाता है।
अस्वाभाविक मृत्यु वाले जीवों की गयातीर्थ में मुक्ति
–जिनका मृत्यु के बाद (शव न मिलने से) संस्कार नहीं हो पाता है,
–जो मनुष्य पशुओं द्वारा मारे जाते हैं,
–जिन मनुष्यों की चोर-डकैतों द्वारा हत्या हो जाती है,
–जिनकी मृत्यु सर्प के काटने से होती है।
उन सभी का गया में श्राद्ध करने से वे मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं, उनकी सद्गति हो जाती है।
पिण्डदान के समय करें यह प्रार्थना!
हे गदाधर विष्णु! मैं पितृकार्य के लिए इस गयातीर्थ में आया हूँ। मेरे द्वारा किए गए इस पितृकार्य के आप साक्षी हों। हमारे कुल में जो पितर पिण्डदान एवं जल-तर्पण से वंचित रहे हैं, जो चूडाकर्म-संस्कारविहीन हैं, जो गर्भपात के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए हैं, जिनका अग्निदाह-संस्कार नहीं हुआ है, जिनकी अग्नि में जलकर मृत्यु हुई है, और जो दूसरे पितृगण हैं, वे मेरे द्वारा किए गए पिण्डदान से तृप्त हों, और तृप्त होकर परमगति को प्राप्त हों।
पिता, पितामह, प्रपितामह, माता, पितामही, प्रपितामही, मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह, मातामही, प्रमातामही, वृद्धप्रमातामही, और अन्य पितृजनों को मेरे द्वारा दिया गया यह पिण्ड अक्षय होकर प्राप्त हो।
नरक के भय से डरे हुए पितृजन इसलिए पुत्र-प्राप्ति की अभिलाषा करते हैं कि गया में कोई भी मेरा पुत्र जाएगा तो हमारा उद्धार करेगा। यदि उसके पैरों से भी इस तीर्थ के जल का स्पर्श होगा, तो हमें निश्चित ही कुछ-न-कुछ सद्गति मिल ही जाएगी।
गया में किया जाता है अपना भी श्राद्ध!
मनुष्य को इस गयाक्षेत्र में अपने लिए भी तिलरहित पिण्डदान करना चाहिए। भगवान जनार्दन के हाथ में अपने लिए पिण्डदान समर्पित कर कहें–
’हे जनार्दन भगवान विष्णु! मैंने आपके हाथों में वह पिण्ड प्रदान किया है, अत: परलोक में पहुंचने पर मुझे मोक्ष प्राप्त हो। ऐसा करने से मनुष्य पितृगणों के साथ स्वयं भी ब्रह्मलोक प्राप्त करता है।’
गयातीर्थ की महिमा इन शब्दों से जानी जा सकती है–
गृहाच्चलितमात्रस्य गयायां गमनं प्रति।
स्वर्गारोहण सोपानं पितृणां तु पदे पदे।। (गरुड़पुराण)
‘गया यात्रा के लिए मात्र घर से चलने वाले के एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं।’