श्रीमद्भगवदगीता की महिमा अगाध और असीम है। श्रीमद्भगवदगीता का उपदेश महान अलौकिक है। अर्जुन के संदर्भ में जो युद्ध है वही हम सभी के जीवन में भी है। जैसे विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करना आदि। एक किसान कड़ी धूप में कष्ट झेलता हुआ खेतों में हल चलाकर अनाज उगाता है। ये उस किसान का युद्ध है। जब सभी लोग सुख और नींद में सोते होते हैं एक गार्ड जगकर अपनी ड्यूटी निभाता है, ये उसका युद्ध है। परिवार में सभी लोग सुख सुविधाओं का उपयोग करते हुए लाइफ जी रहे होते हैं वहां परिवार का संरक्षक ठंड, बरसात, धूप सहता हुआ, पैसे कमाने के लिए भटकता है। ये उसका युद्ध है। इस प्रकार से गीता केवल अर्जुन को ही रास्ता नहीं दिखाती बल्कि जनसामान्य को भी उस रास्ते से रूबरू कराती है जो उसके कर्तव्य निर्वाह के लिए उपयुक्त होता है।श्रीमद्भागवतगीता में सबसे महत्वपूर्ण कर्मयोग को माना गया है क्योंकि कर्म के बिना ये दुनिया नहीं चल सकती। किसी भी व्यक्ति को अपना जीवन काटने के लिए किसी ना किसी कर्म का आश्रय लेना होता है। वैसे भी जीव का स्वभाव कर्म करना ही है। वो जब से उत्पन्न होता है और जब तक जीता है कुछ ना कुछ करता ही रहता है। यहां सवाल इस बात का है कि अगर उसे ऐसी शिक्षा मिल जाती है जो उसे उपयुक्त कर्म करने के लिए प्रेरित करे तो जिंदगी बिताना सरल हो जाता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ना तो कोई हथियार दिया, ना वो उनकी तरफ से लड़े, बल्कि वो ज्ञान दिया जिससे अर्जुन अपने कर्तव्य पथ का स्वयं निर्धारण कर सके। इसी तरह से समाज में भी उन व्यक्तियों का महत्व सबसे ज्यादा होता है जो अपने कर्म से भटके हुए लोगों को उनके कर्तव्य पथ पर लाकर खड़ा कर सकें। अभी तक हमने गीता के अध्याय 1 के 13 वें श्लोक तक का पठन किया। आज हम 14 वें श्लोक का पठन करेंगे-
हिमशिखर धर्म डेस्क
अध्याय 1 श्लोक 14
दूसरी ओर से श्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये।
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुःः। ।१४।।
ततः – इसके अनन्तर; श्वेतै: – श्वेत (सफेद); हयैः – घोड़ों से; युक्ते – युक्त; महति – विशाल; स्यन्दने – रथ में; स्थितौ– आसीन; माधवः – श्रीकृष्ण महाराज ने; पाण्डव – अर्जुन (पाण्डुपुत्र) ने; च – तथा; एव – निश्चय ही; दिव्यौ – दिव्य; शङखौ – शंख; प्रदध्मतुः – बजाये।
भावार्थ (हिन्दी)
दूसरी ओर से श्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये।
भावार्थ (अंग्रेजी)
On the other side, both Lord Krishna and Arjuna, stationed on a great chariot drawn by white horses, sounded their transcendental conchshells.
तात्पर्य
भीष्मदेव द्वारा बजाये गये शंख कि तुलना में कृष्ण तथा अर्जुन के शंखों को दिव्य कहा गया है। दिव्य शंखों के नाद से यह सूचित हो रहा था कि दूसरे पक्ष की विजय की कोई आशा न थी क्योंकि कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे। जयस्तु पाण्डुपुत्राणां येषां पक्षे जनार्दनः – जय सदा पाण्डु के पुत्र-जैसों कि होती है क्योंकि भगवान् कृष्ण उनके साथ हैं। और जहाँ जहाँ भगवान् विद्यमान हैं, वहीँ वहीँ लक्ष्मी भी रहती हैं क्योंकि वे अपने पति के बिना नहीं रह सकतीं। अतः जैसा कि विष्णु या भगवान् कृष्ण के शंख द्वारा उत्पन्न दिव्य ध्वनि से सूचित हो रहा था, विजय तथा श्री दोनों ही अर्जुन की प्रतीक्षा कर रही थीं। इसके अतिरिक्त, जिस रथ में दोनों मित्र आसीन थे वह अर्जुन को अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था और इससे सूचित हो रहा था कि तीनों लोकों में जहाँ कहीं भी यह जायेगा, वहाँ विजय निश्चित है।
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