गीता श्लोक एवं भावार्थ: गीता प्रथम अध्याय का तेरहवां श्लोक

श्रीमद्भगवदगीता की महिमा अगाध और असीम है। इन श्लोकों में बहुत गहरा अर्थ भरा हुआ होने से इनको सूत्र भी कह सकते हैं। श्रीमद्भगवदगीता का उपदेश महान अलौकिक है। जब एक अच्छे विद्वान् पुरुष के भावों का भी जल्दी अन्त नहीं आता, फिर जिनका नाम, रूप आदि यावन्मात्र अनन्त है, ऐसे भगवान् के द्वारा कहे हुए वचनों में भरे हुए भावों का अन्त आ ही कैसे सकता है? अभी तक हमने गीता के अध्याय 1 के 12 वें श्लोक तक का पठन किया। आज हम 13 वें श्लोक का पठन करेंगे-

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ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।

सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्।।1.13।।

हिंदी अनुवाद

उसके बाद शंख? भेरी (नगाड़े)? ढोल? मृदङ्ग और नरसिंघे बाजे एक साथ बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ।

टीका

युद्ध के लिए भीष्म पितामह के तीव्र उत्साह को देखते हुए कौरवों की सेना ने भी अति उत्सुकता से वाद्ययंत्र बजाकर प्रचंड ध्वनि उत्पन्न की। पणव का अर्थ ढोल, अनक का अर्थ मृदंग और गो-मुख का अर्थ ढोल बजाना है। ये सभी वाद्ययंत्र थे और अद्वितीय समवेत ध्वनि के कारण युद्धक्षेत्र में भयंकर कोलाहल उत्पन्न हुआ।

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