गीता श्लोक एवं भावार्थ : गीता प्रथम अध्याय का चतुर्थ, पंचम और छठवां श्लोक

Uttarakhand

भारतीय संस्कृति में गीता का स्थान सर्वोच्च है। भारतीय साधु-संन्यासियों के अन्तरतम में वीणा की झंकार की तरह गीता के श्लोक झंकृत होते हैं। कथा-प्रवचनों से लेकर घर-घर तक जीवन-सुधार परक उपदेश, नीति-नियमों का जो भी ज्ञान दिया जाता है, उसमें गीता का प्रकाश कहीं न कहीं अवश्य पड़ता है। धरती पर शायद ही ऐसा कोई स्थान हो, जो गीता के प्रभाव से मुक्त हो। भारत भूमि तो उसके स्पर्श से धन्य हो गई है। अभी तक हम गीता प्रथम अध्याय का पहला, दूसरा, तीसरे श्लोक का पठन कर चुके हैं। आज चतुर्थ, पंचम और छठवां श्लोक और व्याख्या-


अत्र शूरा महेश्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथ:।।4।।

धृष्टकेतुश्चेकितान: काशीराजश्च वीर्यवान् ।
पुरुजितकुन्तिभोजश्च शब्यश्च नरपुङ्गव: ।। 5।।

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथः ।। 6।।

अत्र : यहाँ ; शूरा: – शक्तिशाली योद्धा; महेश्वासा: – महान धनुर्धर; भीम-अर्जुन-समाः – भीम और अर्जुन के समान ; युधि – सैन्य कौशल में; युयुधानः – युयुधान ; विराटः – विराट ; – तथा ; द्रुपदः – द्रुपद; – और; महारथः – ऐसे योद्धा जो अकेले ही दस हजार सामान्य योद्धाओं की ताकत की बराबरी कर सकते थे; धृष्टकेतुः – धृष्टकेतु; चेकितानः – चेकितान; काशीराजः – काशीराज; – तथा; वीर्य-वान – वीर; पुरुजित् – पुरुजित्; कुंतिभोजः – कुंतिभोज ; – तथा ; शैब्यः – शैब्य; – तथा ; नर-पुंगवः – पुरुषों में श्रेष्ठ ; युधामन्युः – युधामन्यु ; – तथा ; विक्रान्तः – साहसी ; उत्तमौजाः – उत्तमौजा ; – तथा ; वीर्यवान् – वीर ; सौभद्रः – सुभद्रा का पुत्र ; द्रौपदेयः – द्रौपदी के पुत्र ; च – तथा ; सर्वे – सब ; ईव – सचमुच ; महा-रथः – ऐसे योद्धा जो अकेले ही दस हजार सामान्य योद्धाओं की ताकत की बराबरी कर सकते थे।

स्वामी रामसुखदास जी के अनुसार व्याख्या : ‘अत्र शूरा महेश्वासा भीमार्जुनसमा युधि’ – जिनसे बाण चलाये जाते हैं, फेंके जाते हैं, उनका नाम ‘इश्वास’ अर्थात् धनुष है। ऐसे बड़े बड़े इस ‘इश्वास’ (धनुष) जिनके पास है, वे सभी ‘महेश्वास’ है। तात्पर्य है कि बड़े धनुषों पर बाण बढ़ाने एवं प्रत्यंचा खींचने में बहुत बल लगता है। जोर से खींचकर छोड़ा गया बाण विशेष मार करता है। ऐसे बड़े-बड़े धनुष पास में होने के कारण ये सभी बहुत बलवान् और शूरवीर हैं। ये मामूली योद्धा नहीं हैं। युद्ध में ये भीम और अर्जुन के समान हैं अर्थात् बल में ये भीम के समान और अस्त्र-शस्त्र की कला में ये अर्जुन के समान हैं।

‘युयुधान:’ – युयुधान- (सात्यकि) ने अर्जुन से विशेष अस्त्र-शस्त्र की विद्या सीखी थी। इसलिये भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा दुर्योधन को नारायणी सेना देने पर भी वह कृतज्ञ होकर अर्जुन के पक्ष में ही रहा, दुर्योधन के पक्ष में नहीं गया। द्रोणाचार्य के मन में अर्जुन के प्रति द्वेषभाव पैदा करने के लिये दुर्योधन महारथियों में सबसे पहले अर्जुन के शिष्य युयुधान का नाम लेता है। तात्पर्य है कि इस अर्जुन को तो देखिये ! इसने आप से ही अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखा है और आपने अर्जुन को यह वरदान भी दिया है कि संसार में तुम्हारे समान और कोई धनुर्धर न हो, ऐसा प्रयत्न करूँगा। इस तरह आपने तो अपने शिष्य अर्जुन पर इतना स्नेह रखा है। पर वह कृतज्ञ होकर आपके विपक्ष में लड़नेके लिये खड़ा है, जबकि अर्जुन का शिष्य युयुधान उसी के पक्ष में खड़ा है।

विराटश्च’ – जिसके कारण हमारे पक्ष का वीर सुशर्मा अपमानित किया गया, आपको सम्मोहन अस्त्र से मोहित होना पड़ा और हम लोगों को भी जिसकी गायें छोड़कर युद्ध से भागना पड़ा, वह राजा विराट आपके प्रतिपक्ष में खड़ा है। राजा विराट के साथ द्रोणाचार्य का ऐसा कोई वैरभाव या – बहुत द्वेषभाव नहीं था; परन्तु दुर्योधन यह समझता है कि अगर युयुधान के बाद मैं द्रुपद का नाम लूँ तो द्रोणाचार्य के मन में यह भाव आ सकता है कि दुर्योधन पाण्डवों विरोधमें में हैं। मेरे को उकसाकर युद्ध के लिये विशेषता से प्रेरणा कर रहा है तथा मेरे मन में पाण्डवों के प्रति वैरभाव पैदा कर रहा है। इसलिये दुर्योधन द्रुपद के नामसे पहले विराट का नाम लेता है, जिससे द्रोणाचार्य मेरी चालाकी न समझ सकें और इनसे विशेषता से युद्ध करें।

[राजा विराट उत्तर, श्वेत और शंख नामक तीनों पुत्रों सहित महाभारत-युद्ध में मारे गये ।]

‘द्रुपदश्च महारथः’ – आपने तो द्रुपद को पहले की मित्रता याद दिलायी, पर उसने सभा में यह कहकर आपका अपमान किया कि मैं राजा हूँ और तुम भिक्षुक हो; अतः मेरी-तुम्हारी मित्रता कैसी? तथा वैरभाव के कारण आपको मारने के लिये पुत्र भी पैदा किया, वही महारथी द्रुपद आपसे लड़नेके लिये विपक्षमें खड़ा है।
[राजा द्रुपद युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गये ।]

‘धृष्टकेतुः’ – यह धृष्टकेतु कितना मूर्ख है कि जिसके पिता शिशुपाल को कृष्ण ने भरी सभा में चक्र से मार डाला था, उसी कृष्ण के पक्षमें यह लड़नेके लिये खड़ा है!

[धृष्टकेतु द्रोणाचार्यके हाथ से मारे गये ।]

चेकितानः‘ – सब यादव सेना तो हमारी ओर से लड़ने के लिये तैयार है और यह यादव चेकितान पाण्डवों की सेना में खड़ा है! [चेकितान दुर्योधन के हाथ से मारे गये।]

काशिराजश्च वीर्यवान्‘ – यह काशिराज बड़ा ही शूरवीर और महारथी है। यह भी पाण्डवों की सेनामें खड़ा है। इसलिये आप सावधानी से युद्ध करना; क्योंकि यह बड़ा पराक्रमी है।
[काशिराज महाभारत-युद्धमें मारे गये ।]

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च‘ – यद्यपि पुरुजित् और कुन्तिभोज – ये दोनों कुन्ती के भाई होने से हमारे और पाण्डवों के मामा हैं, तथापि इनके मनमें पक्षपात होने के कारण ये हमारे विपक्ष में युद्ध करने के लिये खड़े हैं।
[पुरुजित् और कुन्तिभोज-दोनों ही युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथसे मारे गये ।]

शैब्यश्च नरपुङ्गवः‘ – यह शैब्य युधिष्ठिरका श्वशुर है। यह मनुष्यों में श्रेष्ठ और बहुत बलवान् है। परिवार के नाते यह भी हमारा सम्बन्धी है। परन्तु यह पाण्डवों के ही पक्ष में खड़ा है।

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‘ – पाञ्चाल देश के बड़े बलवान् और वीर योद्धा युधामन्यु तथा उतमौजा मेरे वैरी अर्जुन के रथके पहियों की रक्षा में नियुक्त किए गये हैं। आप इनकी ओर भी नजर रखना।
[रात में सोते हुए इन दोनों को अश्वत्थामा ने मार डाला ।।

सौभद्रः‘ – यह कृष्ण की बहन सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु है। यह बहुत शूरवीर है। इसने गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन की विद्या सीखी है। अतः चक्रव्यूह रचना के समय आप इसका खयाल रखें।
[युद्ध में दुःशासन पुत्र के द्वारा अन्यायपूर्वक सिर पर गदा का प्रहार करने से अभिमन्यु मारे गये ।]

द्रौपदेयाश्च‘ – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और – सहदेव-इन पाँचों के द्वारा द्रौपदी के गर्भसे क्रमशः प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन पैदा हुए हैं। इन पाँचों को आप देख लीजिये। द्रौपदी ने भरी सभा में मेरी हँसी उड़ाकर मेरे हृदय को जलाया है, उसी के इन पाँचों पुत्रों को युद्ध में मारकर आप उसका बदला चुकायें।
[रात में सोते हुए इन पाँचों को अश्वत्थामा ने मार डाला ।]

सर्व एव महारथाः‘ – ये सब-के-सब महारथी है। जो शास्त्र और शस्त्रविद्या – दोनों में प्रवीण हैं और युद्ध में अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओं का संचालन कर सकता है, उस वीर पुरुषको ‘महारथी’ कहते हैं। ऐसे बहुत-से महारथी पाण्डवसेना में खड़े हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *