गोरखपुर। भारत की प्रसिद्ध गीता प्रेस के अध्यक्ष और सनातन धर्म की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ के सम्पादक राधेश्याम खेमका का निधन हो गया है। 86 वर्ष राधेश्याम पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। जिंदगी भर उनकी इच्छा रही कि काशी के केदारघाट पर उनका निधन हो। काशी के केदारघाट पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली। देर रात आठ बजे काशी में गंगा घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके निधन से गीता प्रेस समेत धर्म-कर्म से जुड़े क्षेत्र के लोगों में शोक की लहर दौड़ गई।
कौन थे राधेश्याम खेमका
राधेश्याम खेमका गोरखपुर की प्रसिद्ध गीता प्रेस के अध्यक्ष थे। जो देश-भर में धार्मिक पुस्तकों के लिए जानी जाती है। राधेश्याम पिछले करीब 40 सालों से सनातन धर्म की प्रसिद्ध पत्रिका कल्याण के संपादक रहे थे। इसके साथ ही वह वाराणसी की प्रसिद्ध संस्थाओं मुमुक्षु भवन, बिड़ला अस्पताल, काशी गोशाला ट्रस्ट से भी जुड़े थे। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं।
38 साल तक रहे कल्याण के संपादक
राधेश्याम खेमका ने सबसे पहले वर्ष 1982 में नवंबर व दिसंबर दो माह कल्याण का संपादन किया था। उसके वर्ष वर्ष 1983 के मार्च अंक से कल्याण के जीवन के अंतिम समय तक संपादक थे। उनके संपादन में कल्याण के 38 वार्षिक विशेषांक, 460 सम्पादित अंक प्रकाशित हुए। इस दौरान कल्याण की 9 करोड़ 54 लाख 46 हजार प्रतियां प्रकाशित हुईं। सनातन धर्म का गूढ़ और प्रामाणिक ज्ञान गीता प्रेस की पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने घर-घर तक पहुंचाने का महत्वूपर्ण कार्य किया।
प्रधानमंत्री ने गीता प्रेस के अध्यक्ष के निधन पर जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गीता प्रेस के अध्यक्ष राधेश्याम खेमका के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए रविवार को कहा कि खेमका जीवनभर विभिन्न सामाजिक सेवाओं में सक्रिय रहे। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी संवेदनाएं खेमका के परिजन एवं उनके प्रशंसकों के साथ हैं।
खेमका जी के सत्प्रयासो को कभी भुलाया नहीं जा सकता
देश के जाने-माने स्तंभकार प्रो. गोविन्द सिंह ने दुःख जताते हुए कहा कि कल्याण संपादक राधेश्याम खेमका के निधन से भारत की धार्मिक, आध्यात्मिक और ध्येयवादी पत्रकारिता को गहरा झटका लगा है। आजादी के बाद कल्याण ही एक ऐसी पत्रिका रही है, जिसने तमाम प्रतिकूल धाराओं के विरुद्ध डट कर मुकाबला किया और भारत भारतीयता के ध्वज को फहराए रखा। हनुमान प्रसाद पोद्दार, जयदयाल गोयन्दका की परंपरा में खेमका जी ने कल्याण के जहाज को निरंतर गतिमान रखा। आज कल्याण संकट में है। कुछ वर्ष पहले उसके बंद होने की खबरें भी आ रही थी लेकिन खेमका जी के नेतृत्व में न सिर्फ वह बची रह पाई बल्कि नई धार के साथ निकलने लगी। खेमका जी के सत्प्रयासो को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
संत समाज और विद्वत जनों में शोक की लहर
नृसिंह पीठाधीश्वर रसिक महाराज कहना है कि कल्याण पत्रिका के जरिए धर्म का प्रकाश घर-घर पहुंचाने वाले कर्मयोगी का निधन समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। वह विचार से मनीषी, आचार से तपस्वी, कर्मों से धर्मनिष्ठ और जीवन निष्ठा में वैरागी थे। उत्तराखण्ड विद्वत सभा के पूर्व अध्यक्ष पं. उदय शंकर भट्ट का कहना है कि महाप्रयाण के बाद भी उनके कृत्य, धार्मिक निष्ठा, सनातनी समर्पण, गो-सेवा, संस्कृत उन्नयन के कार्य से वह सदैव सभी के दिलों में जीवित रहेंगे।
जीवन भर किया गंगाजल का सेवन
राधेश्याम खेमका बचपन से ही धार्मिक विचार के थे। बचपन से ही वे अपने पिता के साथ माघ मेले में काशी में पूरे एक महीने का कल्पवास रखते थे। पिछले कई दशकों से वे सिर्फ गंगा जल ही पीते थे। कहीं यात्रा पर जाना हुआ तो वे आवश्यकतानुसार गंगाजल लेकर चलते थे। वे धर्म सम्राट करपात्री महाराज के कृपा पात्र थे।