सुप्रभातम् : देना और मांगना आना चाहिए

हिमशिखर धर्म डेस्क

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दार्शनिक विचार के अनुसार यह जाना जाता है कि जगत मायासृष्ट है। प्रकृति एक अनंत सत्ता है, एक विशाल शक्तिशालिनी सत्ता है और मनुष्य एक सामान्य जीव है। मनुष्य अपने प्रयास और शक्ति के द्वारा कितना आगे बढ़ सकता है, इसके लिए उसे किसी के पास से प्रेरणा लेनी होगी, मदद लेनी होगी।

इस जगत में नासमझ और संकोची लोग किसी से कुछ मांग नहीं पाते। देना और मांगना दोनों अपने आप में महत्वपूर्ण है। किसी को कुछ देना हो तो यह एक फौलादी प्रयास होता है। मांगना हो तो मुलायम कोशिश करना पड़ती है। मांग एक रहस्यपूर्ण घटना है, क्योंकि किससे, क्या और कब मांग रहे हैं, यह समझ बहुत जरूरी है। कुछ रिश्तों में मांग हक है और कुछ स्थितियों में यह अपराध भी है।

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गलत या अनुचित मांग की कोख से ही भ्रष्टाचार जैसी बीमारी का जन्म होता है। मांग के पीछे संवेदना हो तो मांग वाजिब हो जाती है। माता-पिता से बहुत कुछ मांग लो, पति से निजी समय मांगो, पत्नि से प्रेम, बच्चों से अच्छा आचरण मांगो। रिश्तेदारों से मेल-मिलाप, भाई-बहन से अपनापन मांगो। दुनिया से अपने हक का मांगो और भगवान से सबकुछ मांग लो। वह बड़ा दयालु है।

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बस, बिना किसी समीकरण के भाव समर्पण का हो तो वह सबकुछ देने के लिए तैयार है। अब यह दावा खोखला होगा कि हमारा काम बिना किसी से कुछ मांगे चल जाएगा। यदि आप सोचें कि हम किसी से कुछ नहीं मांगेंगे तो भी बेईमानों सें कहीं-कहीं ईमानदारी ही मांगना पड़ जाएगी। इसलिए मांगते वक्त भगवान के सामने नासमझ और संसार के सामने संकोची हो जाएं। हमारी मांग से हमें तो मिलेगा ही, देने वाले के पुण्य में भी वृद्धि होगी।

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