सुप्रभातम्: अंगद ने अपनी क्षमता को कमजोर समझा, तब हनुमानजी गए लंका

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

श्रीरामचरित मानस में माता सीता की खोज करते हुए जामवंत, अंगद और हनुमानजी दक्षिण के समुद्र तट तक पहुंच गए थे। यहां से किसी को लंका जाकर माता सीता के बारे में पता लगाकर वापस आना था। ये काम कौन करेगा, इस पर सभी मंथन कर रहे थे।

श्रीरामचरित मानस में जामवंत के बारे में लिखा है कि-

जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा। नहिं तन रहा प्रथम बल लेसा॥

जबहिं त्रिबिक्रम भए खरारी। तब मैं तरुन रहेउँ बल भारी॥

भावार्थ:-ऋक्षराज जाम्बवान् कहने लगे- मैं बूढ़ा हो गया। शरीर में पहले वाले बल का लेश भी नहीं रहा। वामन अवतार के समय मैं जवान था और मुझ में बड़ा बल था।

इसके बाद अंगद के बारे में लिखा है कि-

अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥

भावार्थ:-अंगद ने कहा- मैं पार तो चला जाऊँगा, परंतु लौटते समय के लिए हृदय में कुछ संदेह है। जाम्बवान् ने कहा- तुम सब प्रकार से योग्य हो, परंतु तुम सबके नेता हो, तुम्हे कैसे भेजा जाए?

अंगद के मना करने के बाद जामवंत ने हनुमानजी को इस काम के लिए प्रेरित किया। उन्होंने हनुमान जी को उनके बल की याद दिलाई।

इसके बाद हनुमान जी के बारे में लिखा है कि-

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥

पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥

भावार्थ:-ऋक्षराज जाम्बवान् ने श्री हनुमानजी से कहा- हे हनुमान्! हे बलवान्! सुनो, तुमने यह क्या चुप साध रखी है? तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो।
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं। 
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा। 
भावार्थ:-जगत् में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री रामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमानजी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए।
हनुमान जी को अपनी शक्ति की आई याद-

सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा।।

भावार्थ:-उनका सोने का सा रंग है, शरीर पर तेज सुशोभित है, मानो दूसरा पर्वतों का राजा सुमेरु हो। हनुमानजी ने बार-बार सिंहनाद करके कहा- मैं इस खारे समुद्र को खेल में ही लाँघ सकता हूँँ।  हनुमानजी आत्मविश्वास से भरकर बोले कि अभी एक ही छलांग में समुद्र लांघकर, लंका उजाड़ देता हूं और रावण सहित सारे राक्षसों को मारकर सीता को ले आता हूं। हे जाम्बवान्! मैं तुमसे पूछता हूँ, तुम मुझे उचित सीख देना (कि मुझे क्या करना चाहिए)।

जामवंत ने हनुमानजी को समझाया कि सिर्फ सीता का पता लगाकर लौट आना-

एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई।
तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना।।

भावार्थ:-(जाम्बवान् ने कहा-) हे तात! आप ऐसा कुछ न करें। आप सिर्फ सीता माता का पता लगाकर लौट आइए। हमारा यही काम है। फिर प्रभु राम खुद रावण का संहार करेंगे।

कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनि हैं।
त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानि हैं॥
जो सुनत गावत कहत समुक्षत परमपद नर पावई।
रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई॥

भावार्थ:-वानरों की सेना साथ लेकर राक्षसों का संहार करके श्री रामजी सीताजी को ले आएँगे। तब देवता और नारदादि मुनि भगवान् के तीनों लोकों को पवित्र करने वाले सुंदर यश का बखान करेंगे, जिसे सुनने, गाने, कहने और समझने से मनुष्य परमपद पाते हैं और जिसे श्री रघुवीर के चरणकमल का मधुकर (भ्रमर) तुलसीदास गाता है।

इसके बाद हनुमानजी समुद्र लांघने के लिए निकल गए। सुरसा और सिंहिका नाम की राक्षसियों ने रास्ता रोका भी, लेकिन उनका आत्म विश्वास कम नहीं हुआ। लंका पहुंचकर उन्होंने सीता का पता लगाया, लंका जलाई और लौट आए।

इस प्रसंग की सीख यह है कि हमें अंगद की तरह अपनी शक्तियों पर संदेह नहीं करना चाहिए। खुद पर भरोसा रखें कि हम मुश्किल से मुश्किल काम भी कर सकते हैं, तभी जीवन में सफलता मिल सकती है।

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