सुप्रभातम् : परनिंदा से बचें

हम अक्सर कहते-सुनते हैं कि दूसरों की निंदा यानी बुराई करने में लोगों को बड़ा मजा आता है। हिंदू धर्म ग्रंथों में इसे पाप बताया गया है। माना जाता है कि निंदा दो प्रकार की होती है। पहली निंदा तो स्वभाववश होती है। दूसरी निंदा ईर्ष्या के कारण होती है।

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कई लोगों का स्वभाव ही ऐसा बन जाता है कि वे किसी के बारे में सकारात्मक बात नहीं करते। वे कमियां ढूंढते रहते हैं और उसकी निंदा करते हैं। ईर्ष्यावश की गई निंदा किसी की सफलता को देखकर जन्म लेती है। इससे उस सफल व्यक्ति के प्रति हमारे मन में जलन पैदा हो जाती है और उसके अच्छे कामों का भी छिद्रान्वेषण करने लगते हैं। पढ़िए यह कहानी –


एक राजा के दरबार में ब्राह्मण भोज का आयोजन किया गया। छप्पनभोग महल के खुले आंगन में बनवाए गए। उसी वक्त अनजाने में एक हादसा हो गया। खुले में पक रही रसोई के ऊपर से एक चील अपने पंजे में जिंदा सांप दबोचकर निकल रही थी। सांप ने चील के पंजों से छुटकारा पाने के लिए फुंफकार भरी और साथ ही जहर उगला। उसके मुख से निकली जहर की कुछ बूंदें पाकशाला में पक रही रसोई के व्यंजनों में गिर गईं।

जहरीले भोजन के खाने से सभी ब्राह्मण काल के गाल में समा गए। जब राजा को इस बात का पता चला तो ब्रह्महत्या के पाप ने उसको दुखी कर डाला। ऐसे में सबसे ज्यादा मुश्किल खड़ी हो गई यमराज के लिए कि आखिर इस पाप का भागी कौन है और ब्रह्महत्या के पाप के लिए किसको दंड दिया जाए।

सबसे पहला नाम राजा का आया, क्योंकि राजा ने ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमंत्रित किया था। यमराज के मन में दूसरा नाम रसोइये का आया, जिसने ब्राह्मणों के लिए महाप्रसाद तैयार किया था। राजा को तीसरा ख्याल चील का आया जो सांप को पकड़कर ले जा रही थी। सबसे अंत में यमराज ने सांप के पाप पर विचार किया।

लंबे समय तक यमराज अनिर्णय की स्थिति में रहे कि आखिर ब्रह्महत्या का दंड किसको दिया जाए। घटना के कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने के लिए उसके महल में जा रहे थे। ब्राह्मणों ने एक राहगीर से महल का रास्ता पूछ लिया। तब राहगीर ने ब्राह्मणों को रास्ता बताते हुए कहा- ‘देखो भाई जरा ध्यान से जाना। वह राजा ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है।’

जैसे ही राहगीर ने यह बात कही, यमराज ने फैसला कर लिया कि मृत ब्राह्मणों के पाप का फल इस राहगीर के खाते में भी जाएगा और यह दंड को भोगेगी। यमदूतों ने यमराज से पूछा- ‘प्रभु ऐसा क्यों?’ तब यमराज ने कहा- ‘जब कोई व्यक्ति पाप करता है तो उसको पापकर्म करने में बड़ा आनंद आता है। ब्राह्मणों की मौत से न तो राजा को, न रसोईये को, न चील को और न ही सांप को आनंद आया। ये सभी इस अपराध से अनजान भी थे। महापाप की इस दुर्घटना का इस राहगीर ने जोर-शोर से बखान कर जरूर मजा लिया, इसलिए ब्रह्महत्या का यह पाप इसके खाते में जाएगा।’

अक्सर हम यही सोचते हैं कि हमने कभी कोई बड़ा पाप नहीं किया है, उसके बावजूद हमको किस बात का दंड मिल रहा है। यह दंड वही होता है, जो हम परनिंदा का पाप कर संचित करते रहते हैं।

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