सुप्रभातम्: होली का पौराणिक ही नहीं, वैज्ञानिक महत्व भी है

होली यानी रंगों और खुशियों का त्यौहार। हिन्दु कैलेंडर के अनुसार होली का त्योहार शिशिर और वसंत ऋतु के बीच में पड़ता है। यह ऋतुएं संधिकाल कहलाती हैं। मौसम में जैसे ही बदलाव होता हमारा शरीर भी उसके अनुरूप ढलने लगता है। हमेशा यह बदलाव सकारात्मक नहीं होते कई बार यह आने वाले बदलाव रोग का कारण भी होते हैं। आइये जानते हैं इसके वैज्ञानिक कारण और इससे बचने के उपाय

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

देश में होली की धूम का मौहाल है। होली एक ऐसा त्योहार है जिसमें लोग आपसी रंजिश और नफरत को भूलकर एक दूसरे को गले लगाते हैं, मिठाइयां खिलाते हैं और प्यार बांटते हैं। हिंदू धर्म में जहां एक तरफ इस त्योहार का आध्यात्मिक महत्व है, वहीं विज्ञान के नजरिए से भी होली के त्योहार और इसमें होने वाले रीति-रिवाजों के स्वास्थ्य लाभ का भी जिक्र मिलता है। होलिका दहन से लेकर प्राकृतिक रंगों से खेलने तक, होली के त्योहार को सेहत के नजरिए भी काफी फायदेमंद माना जाता है।

फाल्गुन की पूर्णिमा को होली पूरे देश में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में जितने भी पर्व हैं, वो न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व से जुड़े होते हैं बल्कि विज्ञान भी उन्हें सेलिब्रेट करने के कई ऐसे लाभ बतलाते हैं, जिससे यह साबित होता है कि इन पर्वों को मनाने के लिए मानव समुदाय का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ भी देखा गया है। ये पर्व केवल एक खुशियों का त्यौहार नहीं होते हैं बल्कि स्वास्थ्यकर और हितकारी भी होते हैं जिनके बारे में हम शायद आज अनजान हैं लेकिन हमारे पूर्वज जागरुक थे। तभी तो उन्होंने इन रस्मों-रिवाजों को ऐसा बनाया है कि वो हर्षोल्लास भी दे और लाभ भी।

होली का वैज्ञानिक महत्व

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो होली मनाने के कई लाभ हैं। होली से पहले ही मौसम में बदलाव आ रहा होता है, जिसके कारण वातावरण में कई बदलाव होते हैं। अनेक प्रकार के बैक्टीरियां, कीटाणु वातावरण को दूषित करते हैं और शरीर को भी। लेकिन होली से एक दिन पहले जो हम होलिका दहन मनाते हैं, उसके आग और धुयें से ये सब समाप्त हो जाते हैं और कई नई बीमारियाँ जन्म नहीं ले पाती। होलिका दहन में लोग अग्नि की चारों ओर परिक्रमा करते हैं। अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने से उसके ताप से शरीर के बैक्टीरिया समाप्त हो जाते हैं और शरीर में नई ऊर्जा आती है। होलिका दहन की गर्माहट इस मौसम में हुए कफ दोष से निजात पाने में भी मदद करता है।

होली वसंत ऋतु के आगमन के साथ आती है, जिससे न केवल वातावरण खुशनुमा रहता है बल्कि रंगों की मस्ती और ढोल-नगाड़े के बीच जब लोग जोश में भरकर होली खेलते हैं, तो ये सभी बातें सर्दी के मौसम की उदासी, आलस्य, डिप्रेशन इत्यादि को दूर भगाकर शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करती हैं। होली पर लोग ढाक, पलाश के फूलों या अन्य प्राकृतिक फूलों से रंगीन पानी और विशुद्ध अबीर और गुलाल तैयार किया करते थे, जिसका त्वचा पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और मन सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। त्यौहार पर हम अक्सर अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, तो धूल-मिट्टी, मच्छरों, कीटाणुओं आदि का सफाया हो जाता है। साफ-सुथरा घर न केवल मन को सुखद एहसास देता है बल्कि सकारात्मक ऊर्जा भी प्रवाहित करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *