सुप्रभातम्:अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति में संतुलन बनाए रहें

हिमशिखर खबर

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संत एकनाथ को एक शिष्य बहुत प्रिय था, क्योंकि वह विचित्र प्रश्न किया करता था। एकनाथ जी बड़े प्रेम से उसके प्रश्नों के उत्तर देते थे। शिष्य के मन में बहुत सी वस्तुएं पाने की इच्छाएं थीं।

शिष्य जब भी एकनाथ जी से बोलता कि मैंने बहुत मेहनत की, लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला तो एकनाथ जी उसे कहते थे कि काही हरकत नाही, ठीक ही हुआ।

एक दिन शिष्य ने एकनाथ जी को बताया, ‘आश्रम में एक बहुत बड़े व्यक्ति आए हुए हैं और वे गाय दान करना चाहते हैं। हमारे आश्रम में गाय आ जाएगी और हम उसके दूध का सेवन करेंगे। ये हमारे लिए बड़ा अच्छा हो जाएगा। दूध की हमें जरूरत भी है और गाय भी मिल रही है।’

एकनाथ जी बोले, ‘काही हरकत नाही, ठीक ही हुआ।’

शिष्य बहुत खुश था, उसने गौ सेवा की जिम्मेदारी ले ली। वह बहुत अच्छे से गौ सेवा करता था। खुद भी दूध पीता और सभी को भी देता था। एक दिन वह गाय मर गई। शिष्य बहुत दुखी हो गया। गाय चली गई तो दूध मिलना बंद हो गया।

शिष्य एकनाथ जी के पास गया और बोला, ‘आज गाय मर गई।’

एकनाथ जी बोले, ‘काही हरकत नाही, ठीक ही हुआ।’

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शिष्य को लगा कि एक तो गाय मर गई और ये कह रहे हैं कि कोई बात नहीं। कुछ दिनों के बाद एक सेठ फिर गाय दान कर गए। शिष्य ने खुश होकर एकनाथ जी से कहा, ‘हमारे पास फिर से एक गाय आ गई है। हम फिर से सेवा करेंगे, हमें फिर से दूध मिलने लगेगा।’

एकनाथ जी बोले, ‘काही हरकत नाही, ये भी ठीक है।’

ये बात सुनकर शिष्य से रहा नहीं गया और उसने कहा, ‘जब गाय नहीं थी, तब भी आप यही कहते थे। फिर गाय आई, कुछ दिन बाद मर गई और फिर गाय आ गई है तो आप अभी भी यही बात कह रह हैं कि काही हरकत नाही, सब ठीक है। आप हर स्थिति में यही क्यों कहते हैं?’

एकनाथ जी बोले, ‘इसका अर्थ यह है कि जीवन में जो भी परिस्थिति आ जाए, चाहे वह हमारे अनुकूल हो या प्रतिकूल हो, हमें उसमें ढल जाना चाहिए। काही हरकत नाही, ठीक ही है, ये एक मंत्र है। इसे जीवनभर अपनाओगे तो उपलब्ध चीजों का आनंद ले पाओगे, और जो नहीं है, उसके लिए दुख नहीं होगा।’

सीख

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हमारी इच्छाएं होती हैं कि हमें बहुत सारी चीजें मिल जाएं, जब चीजें नहीं मिलती हैं तो हम बेचैन हो जाते हैं। जब चीजें मिल जाती हैं, तब भी हमें शांति नहीं मिलती है। जो मिल जाए, उसका आनंद लें और जो चीज न मिले, उसके लिए परेशान नहीं होना चाहिए।

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