स्वामी ईश्वरानन्द सरस्वति
एक न्यूज़ चैनल ने यह कहा था कि भारत में social media में good morning संदेशों की एक महामारी फैली हुई है, जिससे इन्टरनेट traffic पर दबाव पड़ता है। सन्देश भेजने वाला एक जिम्मेदारी पूरा करके सांस लेता है। मैसेज जिनके पास जाता है वे उनको डिलीट करते हुए यह समझ बैठते हैैं कि इन message का प्रत्युत्तर देना उनका कर्तव्य है। इस तरह कितने लाख good morning messages जाते होंगे!
सुबह उठकर मोबाइल फोन उठाते ही social media चेक करने पर किसी न किसी फैमिली या दोस्तों के Good Morning के मैसेज आ जाते हैं। जिसमें कभी फूल पत्तियों के बीच, कभी किसी मुस्कुराते हुए छोटे बच्चे के साथ के साथ Good Morning का संदेश लिखा होता है।
इस तरह के मैसेज भेजकर एक औपचारिकता पूरा करने के पश्चात यह आवश्यक नहीं होता है कि उनके बीच मधुर सम्बंध स्थापित होंगे। एक क्लिक से जो मैसेज फॉरवर्ड होगा, उसमें भाव शून्यता के कारण वह एक यांत्रिक चर्या बन कर ही रह जाता है और कतई मस्तिष्क को छूने वाली संदेश प्रतीत नहीं होती है।
हम जब किसी को शुभ उत्सवों या सुबह good morning कहते हैं तो अनजाने में परोक्ष रूप से यह कहते है कि केवल उत्सव दिन ही शुभ हो या सुबह ही शुभ हो और बाकी समय भगवान् जाने।
जीवन सुख दुःख, शुभ अशुभ का मिश्रण होने के कारण अभी तक धराधाम में किसी युग या कल्प में कोई नर केवल सुख या शुभ ही अनुभव किया हो ऐसा जाना नहीं जाता है। यह शुभ या सुख केवल रेत मिले पुलाव के सेवन के समान है। व्यर्थ ही झूटे आशीर्वाद क्यों दे ? इसलिये उत्सव स्वाभाविक हो!
बुद्धिमत्ता इसमें है कि सैकड़ों messages की जगह मूल में एक मैसेज भेजो जो पूर्ण रूप से फल दायक हो। कैसे? मान लो आप चाहते हो कि एक पेड़ के पत्ते, फूल और फल ताजा रहे, हरे भरे रहे। उसके लिए क्या करते हो ? हर पत्ती, फल और फ़ूल पर पानी डालते हो या केवल् जड़ में? एक एक पत्ती, फ़ूल फल में पानी देने से खिलेंगे नहीं, बल्कि सड़ जायेंगे। जड़ में सिंचाई करने से सभी पत्ती फूल विकसित होंगे।
भगवान ने भगवत् गीता में कहा कि यह संसार एक उल्टा किया हुवा पीपल वृक्ष जैसा है जिस की जड़ ऊपर और संसार रूपी शाखायें नीचे हैं। (भगवत् गीता १५-१)
हमें पेड़ की सिंचाई करनी है तो जड़ रूपी जो भगवान है, उनकी पूजा रूपी सिंचाई करनी चाहिए। तब सबको खुश करने के लिये good morning मैसेज भेजने कि आवश्यकता नहीं है। भोर सुबह सुप्रभात स्तोत्र पढ़ें, दिन भर नामजप, संकीर्तन करें। यह जान लो कि तब पूरा विश्व ब्रह्माण्ड् में जितने देवी, देवता, पशु पक्षी, वृक्ष लता जीव जंतु है, वह सब तुम से प्रसन्न होंगे। अनुराग व्यक्त करना है तो वार्तालाप करो, सुख दुःख की बातें करो, अल्प मधुर प्रिय वचन बोलो।
वही समय good है, शुभ है जब भगवान के नाम का स्मरण हो रहा हो।
विपदो नैव विपद: संपदो नैव संपद्:।
विपद विस्मरणं विष्णु: संपद्नारायण स्मृति।।
अर्थ-“कष्ट कष्ट नही है, सम्पत्ति सम्पत्ति नहीं है। विष्णु को भूल जाना विपत्ति है और भगवान नारायण की स्मृति ही धन सम्पत्ति है। सभी पाठकों को उत्सव स्वाभाविक हो!